अवचेतन मन में प्रवेश: लगभग दुनिया के प्रत्येक व्यक्ति को यह पता है कि उसके अवचेतन मन की शक्ति कितनी है, यह बातें सभी जानते हैं कि हमारा अवचेतन मन अनंत की शक्ति का प्रतीक और परिचायक है। लेकिन इसकी अनंत शक्तियों को प्रयोग में लेना किसी को भी नहीं आता।
यहां मैं आपको एक बात साफ करना चाहूंगा कि मैं भी अपने अवचेतन मन का पूरा प्रयोग नहीं कर पाता हूं। लेकिन जो सीखता हूं या जो सीख रहा हूं, उसे ही आपको सिखाने की कोशिश करता हूं और कर रहा हूं। तो चलिए शुरू करते हैं हमारे आज के विषय “चेतन मन की अंतिम सीमा और अवचेतनमन में प्रवेश” की ओर.
अपने विषय की ओर आगे बढ़ने से पहले हमें मन/दिमाग के अवस्थाओं/स्तरों को समझना होगा, तो क्या ये अवस्थाएं मतलब कितनी अवस्थाएं होती हैं हमारे मन/दिमाग की? 1. चेतन मन, 2. अवचेतन मन, 3. अचेतन मन.
अवचेतन मन-
हमारे दिमाग का वो हिस्सा जो कल्पनाओं को भी हकीकत में बदल सकता है अवचेतन मन या सबकॉन्शियस माइंड कहलाता है. चूँकि अवचेतन मन दिमाग का 90 फीसदी भाग होता है. इसलिए इसकी कार्य क्षमता भी बहुत अधिक होती है और यह 24 घंटे काम करता है.
हालांकि इसे पूरा सक्रीय करने के लिए हमें कुछ बातों पर ध्यान देना आवश्यक है जिनको समझकर हम अपनी बात इस तक आसानी से पहुंचा सकते हैं. बाकी का सारा काम हमारा अवचेतन मन खुद ही कर लेता है.
चेतन मन-
जिसे हम कॉन्शियस माइंड या लाजिकल माइंड के नाम से भी जानते है. इसका प्रमुख काम होता है तर्क करना. मतलब किसी भी चीज के बारे तर्क करके सही जानकारी को प्राप्त करना. एक मनोवैज्ञानिक अधय्यन के अनुसार हमारा चेतन मन पूरे दिमाग का मात्र 10% ही होता है.
अचेतन मन-
दिमाग का यह हिस्सा अवचेतन मन से ही संबंध रखता है. सामान्य शब्दों में कहें तो अचेतन मन दिमाग की बेहोशी की अवस्था होती है. अब आते हैं अपने आज के मूल विषय पर- चलिए शुरू करते हैं-
अवचेतन मन की सीमाओं को समझना-
अवचेतन मन को सक्रिय करने या इसका सही प्रयोग करने के लिए हमें चेतन मन और अवचेतन मन की सीमाओं को समझना बहुत ही जरूरी है, क्योंकि चेतन मन की सीमा कहां खत्म होती है और अवचेतन मन की सीमा कहां से शुरू होती है। यह जानना बहुत ही जरूरी है। चेतन मन की सीमा जहां खत्म होती है।
ठीक वहीं से अवचेतन मन की सीमा शुरू होती है। चेतन मन से तात्पर्य यह है कि एक मनुष्य अपने संपूर्ण जीवन में किए गए सभी तरह के तार्किक कार्य यानी किसी मनुष्य का तार्किक दिमाग ही चेतन मन होता है।
एक मनुष्य तार्किक रूप से जहां तक सोच सकता है वही सीमा चेतन मन की अंतिम सीमा होती है और जिस जगह पर सारी तार्किक सीमाएं समाप्त हो जाती है वहीं से अवचेतन मन का क्षेत्र शुरू होता है।
इसका निष्कर्ष यह निकलता है कि यदि किसी भी कार्य, स्थिति या परिस्थिति को लेकर हमारा मन यदि कोई या किसी तरह का लॉजिक यानी तर्क प्रस्तुत करता है। उस वक्त हमारा चेतन मन ही कार्य कर रहा होता है।
किसी भी इंसान की विचार प्रक्रिया के दो भाग होते हैं। हमारे मस्तिष्क द्वारा सोचे गए तार्किक विचारों का संबंध हमारे चेतन मन से होता है तथा हमारे भावनाएं, विश्वास और संवेदनाओं के विचार प्रक्रिया का संबंध हमारे अवचेतन मन से होता है।
यहां आप यह बाते समझ लें कि जब आप अपने दिमाग, अपने मस्तिष्क (चेतन मन और अवचेतन मन) के स्तर पर किसी भी बात या कार्य का निर्णय करेंगे तब तक यह सारे कार्य चेतन अवस्था पर होंगे।
आप अपने तार्किक विचार प्रक्रिया के आधार पर जब तक कोई कार्य करेंगे तब तक आप कभी भी चेतन मन की अंतिम सीमा को पार नहीं कर सकते। लेकिन जैसे ही किसी कार्य को आप भावनात्मक रूप से करते हैं, अपने दिल के स्तर पर करते हैं या फीलिंग और इमोशन के स्तर पर करते हैं।
तो वैसे ही वो बात या कार्य चेतन मन की अंतिम सीमा को पार कर अवचेतन मन के क्षेत्र में प्रवेश कर जाता है। आप यदि किसी पढ़े और दुष्कर कार्य मतलब ऐसे कार्य जो लाखों, करोड़ों में कुछ एक लोग ही कर पाते हैं।
यदि ऐसा कोई कार्य करने की सोच रखते हैं तो यह कार्य सिर्फ चेतन मन के सहारे से कभी नहीं किया जा सकता है। यानी कि यदि आप इतिहास रचने के बारे में सोच रखते हैं तो यह काम आप सिर्फ तार्किक चेतना से नहीं कर सकते।
लेकिन जैसे ही आपका अवचेतन मन उस काम को करने के लिए आपकी मदद करना शुरू करता है वैसे ही उस कार्य की उपलब्धि या सफलता मिलना शुरुआत हो जाती है। मतलब यह है कि जैसे ही आपकी सकारात्मक सोच आपकी भावनाएँ और आपकी संवेदनाएँ जिस कार्य से जुड़ जाती हैं, उसी पल से इतिहास की रचना शुरू हो जाती है।
अब आप सोच रहे होंगे कि हमें कैसे पता चलेगा कि हमारे द्वारा किए गए कौन से कार्य चेतन मन की मदद से हो रहे हैं और कौन से कार्य अवचेतन मन की मदद से। इस सवाल का बहुत ही आसान सा जवाब है कि जैसा कि आप जानते है कि चेतन मन की ताकत सीमित है और अवचेतन मन असीमित।
क्योंकि अवचेतन मन सदैव से सर्व शक्तिमान रहा है। चूंकि इंसान भावना प्रधान जीव है और भावनाएं शक्ति का प्रतीक होती हैं।
जहां कहीं किसी कार्य के प्रति आपके मन में संदेह आए तो आप इसे आंख बंद करके समझ सकते हैं कि कार्य को करने के लिए जो शक्ति या पावर आपको मिल रही है वह चेतन मन की ताकत या पावर है। चूंकि संदेह मतलब लिमिटेड पावर मतलब चेतन मन की पावर।
और वहीं कोई संदेह नहीं का मतलब है अनलिमिटेड पावर यानी अवचेतन मन की पावर। उदाहरण के तौर पर- किसी कार्य को करते समय संदेह जैसे- इस कार्य को तो मैं कर रहा हूं पर दुनिया क्या सोचेगी? कहीं यह कार्य असफल हो गया, तो मेरा क्या होगा? मुझे लगता है यह कार्य मेरे से ना हो पाएगा इत्यादि … इत्यादि।
इस तरह की सोच या विचार संदेहात्मक है। इसका मतलब यह है कि किसी भी शंका या संदेह की सोच के साथ आप किसी कार्य को कर रहे हैं तो इसके लिए आपको जो शक्तियां प्राप्त हो रही हैं। वह सारी की सारी शक्तियां, सारी की सारी ऊर्जा आपको चेतन मन के माध्यम से मिल रही है। मतलब चेतन मन की सीमा के अंदर ही मिल रही है।
आपकी शक्ति उस कार्य को करने के प्रति अवचेतन ऊर्जा को प्रयोग नहीं कर रही है क्योंकि आपकी शक्ति अवचेतन मन की सीमा तक पहुंच नहीं रही है। लेकिन जो लोग अवचेतन मन की पावर या ऊर्जा का प्रयोग कर रहे होते हैं।
उन्हें अपने कार्य के प्रति किसी भी तरह का कोई भी संदेह नहीं होता। अवचेतन मन की पावर या ऊर्जा परिणाम पर कभी भी केन्द्रित नहीं करती। यह अपने कार्य पर केन्द्रित होती है। इस ऊर्जा का प्रयोग करने वाले लोग दुनिया की परवाह नहीं करते। खुद में और खुद के कार्य में मस्त होते हैं। क्योंकि ये भविष्य में नहीं जीते बल्कि वर्तमान में ही जीते हैं।
अगर किसी भी कार्य के प्रति आपको अपने अवचेतन मन को पावर को लेना है तो उस कार्य को आप को पूरे मन से, दिल लगा कर, संपूर्ण एकाग्रता के साथ करना होगा। तभी आपका अवचेतन मन आपकी पकड़ में आएगा।
आपने ध्यान या मेडिटेशन के बारे में तो जरूर सुना ही होगा। लोग कहते हैं कि हमें ध्यान करना चाहिए। ध्यान मतलब “अपनी सोच को एक निश्चित बिंदु पर केंद्रित करना” यानी एकाग्रचित करना।
लोग ध्यान क्यों करते हैं? या एकाग्रचित होना क्यों करते हैं? ज्यादातर लोग यह सोचते हैं कि लोग “ध्यान मन की शांति के लिए करते हैं” और यह सही भी है। लेकिन मन की शांति तभी मिलती है जब आपका अवचेतन मन आपको ऊर्जा या शक्ति देगा।
और जब लोग ध्यान करते हैं तो वे अपने अवचेतन मन की ऊर्जा या शक्ति को ही जागृत कर रहे होते हैं। अपने अवचेतन मन को एक्टिवेट कर रहे होते हैं।
आपका मन किसी कार्य के प्रति जितना कम विचलित होगा जितना कम भटकेगा यानी उस कार्य के प्रति आपका मन जितना ज्यादा एकाग्रचित होगा, जितना ज्यादा केंद्रित होगा। आपको आपके अवचेतन मन की ऊर्जा या शक्ति उतनी ही ज्यादा प्राप्त होगी।
अंत में-
अंत में यही कहना चाहूँगा कि हमारा दिमाग अभी तक ज्ञात दुनिया की सबसे जटिल संरचनाओं में से एक है और इसकी जटिलता को अभी भी हम समझने की कोशिश ही कर रहे हैं. आज के लिए बस इतना ही,
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धन्यवाद!
Mera hai bilkul aisa hai