भूतों का तांडव – एक अनुभव (पार्ट-1)

हेल्लो दोस्तों आज मैं आपके साथ अपने उन अनुभवों को साझा करने जा रहा हूँ, जिनके कारण मेरा नजरिया, समझने का तरीका या यूं कहूं कि मेरा पूरा जीवन ही बदल गया. भूतों का तांडव – एक अनुभव एक अच्छी सीख साबित हो सकती है जो पैरानार्मल चीजों को बस हल्के में लेते हैं और बाद में पछताना पड़ता है.

डिस्क्लेमर-

मैंने अपने इस अनुभव को कहानी का स्वरुप देने की कोशिश की है ताकि पाठक गण को पढने में आनंद और वो महसूस हो सके जो मैंने महसूस किया था. इस अनुभव में स्थान/जगह व सम्बंधित व्यक्तियों के नामों को सुरक्षा हित की दृष्टि से बदल दिया गया है.

इसके साथ यह अनुभव कई पार्ट में प्रकाशित किया जायेगा. इस अनुभव लेख में उल्लिखित की गई सभी सामग्री Copyrighted है. जिसका किसी अन्य के द्वारा commercial तौर पर किये जाने पर सख्त कार्यवाही की जाएगी. चलिए शुरू करते हैं-

भूतों-का-तांडव-एक-अनुभव

ये बात यही कोई 2009 की है जब मैं अपने ग्रेजुएशन की पढाई कर रहा था. दैनिक स्तर पर कॉलेज जाना और अपनी पढाई पूरी करना. आखिरी सेमेस्टर के एग्जाम समाप्ति के कगार पर पहुच चुके थे… या यूं कहूं कि एक-दो को छोड़कर लगभग सभी निपट चुके थे.

उस दिन शायद अर्थशास्त्र का अंतिम पेपर था, जैसे ही घंटी बजी सभी अपनी उत्तर पुस्तिका जमाकर कमरे से बहार निकलने लगे… हालांकि कॉलेज की लाइफ में लगभग सभी के कई दोस्त जरूर होते हैं… ऐसे ही मेरे भी थे… हम सभी दोस्त पेपर ख़त्म हो जाने के बाद कॉलेज के पास ही के ढाबे पर कुछ न कुछ खाने-पीने जाते थे.

आखिरी पेपर के समापन में भी हम सभी ढाबे पर गए और कुछ खाने को आर्डर किया, जब तक हमारा आर्डर आता, तब तक हम सभी कुछ न कुछ अनरगल (कॉलेज लाइफ की) बाते किया करते. लेकिन उस दिन बात ही कुछ और थी… शायद ऊपर वाले ने उस दिन हमारे लिए या यूं कहूं कि केवल मेरे लिए कुछ ख़ास ही सोच रखा था.

उस दिन जैसे सभी को सांप सूंघकर चला गया हो, सभी एकदम शांत बैठे हुए थे… इतने में मैं भी वहीँ पहुच गया, मुझे देखकर भी किसी ने कोई भी प्रतिक्रिया नहीं दी… तो मैंने अनुमान लगाया कि शायद आज इन सभी का पेपर ख़राब हुआ है, इसलिए सभी चेहरे उतरे हुए हैं…

इतने में हमारा आर्डर आ जाता है.. मैंने सभी को छेड़ते हुए कहा कि पेपर ख़राब हुआ है तो क्या हुआ… फेल तो नहीं होगे…. सभी ने मेरी तरफ घूरा पर कोई कुछ भी नहीं बोला… मैं बड़ा असमंजस में था कि क्या बात हो गई…?

इतने में एक ने बोला…. देख भाई आज आखिरी पेपर भी फिनिश हो चुका है… अब शायद ही भविष्य में हम मिल पायें…. तो मैंने कहाँ ओ हो! तो ये बात है… और मैं पता नहीं क्या-क्या सोच रहा था… इतने में दुसरे ने कहा कि यही एक बात नहीं है… और भी है..

तो मैंने पूंछा..? और क्या है…. तो उसने बताया कि अगर वो फेल हो गया तो उसके पापा उसे गांव के खेत में हल चलवाएंगे… तो मैंने कहा इसमें कोई दिक्कत है क्या…. तो उसने कहा कि उसके सभी खेत मुर्दहिया (शमशान) से सटे हुए हैं. तो तीसरे ने कहा कि तू दिन में हल चलाना…. मैंने भी यही बोला…

इस पर वो बोला कि तुम लोग जानते नहीं हो मेरे खेत में भूतो का तांडव होता है… मुझे हंसी आ गई… भला ऐसा भी होता है क्या? मैंने कहा तेरा पढना लिखना सब कुछ बेकार है… तू आज भी यह सब मानता है… हम तीनों ठहाका मार कर हंसने लगे…. और खाने-पीने में मशगूल हो गए….

लेकिन वहीँ पर दूसरे वाले दोस्त के चेहरे की हवाइयां उडी हुई थीं, उसे आज की महफ़िल में कोई मजा नहीं आ रहा था. इस बात को मैंने ख़ास-तौर पर नोटिस किया… खाना-पीना हो जाने के बाद बिल देने की बारी थी… तो हम सब मिलकर पैसे दिया करते थे… पर उस दिन दुसरे वाले दोस्त ने पूरा पेमेंट किया और हम सभी से अलविदा कहा.

उसके सहमे हुए स्वर जैसे दिल को चीर गए… और भावनाए तो मानो तहस-नहस हो गई… मैंने महसूस किया कि वह सचमुच बड़ी कठिनाई में है… खैर… उस समय तो हमने उसे जाने दिया… लेकिन मेरे जहन से उसका अलविदा कहने का लहजा बार-बार कांटे की तरह चुभ रहा था. मैं बहुत ही परेशान था कि क्या करूं?

जैसे-तैसे मैं अपने घर पहुंचा… मेरे दिमाग में बस एक ही बात चल रही थी कि कैसे भी करके मुझे अपने दोस्त की मदद करनी है. इतने में एकाएक आईडिया आया कि क्यों न हम सभी दोस्त मिलकर एक बार उसके खेत को देख लें… जिससे पुष्टि हो जाये कि वह सही बता रहा है या फिर हम सभी को डराने के लिए मनगढ़ंत कहानी रची है….

मैंने बाकि दोनों को फोन लगाया और अपने विचार उनके आगे रखे… वो दोनों कहने लगे… आईडिया तो तेरा सही है लेकिन घर वालों से परमिशन लेनी होगी… तो मैंने कहा कि देखों यारों अभी छुट्टियाँ चल रही हैं और घर पर पड़े रहने से बढ़िया है… हम अपने दोस्त के यहाँ घूम आये… घूमने के साथ-साथ हमें अपना काम भी तो करना है….

तो सभी झट से राजी हो गए… और परमिशन भी ले ली…. अब दुसरे दोस्त को फोन करके बताया कि हम सभी उसके यहाँ गाँव में एक हफ्ते के लिए घूमने आ रहे हैं… हालाँकि उसके पास फोन तो था नहीं…. हमने उसके गाँव के फोन बूथ पर कॉल करके उसे बताया था… वह बहुत ही खुश था… कि मेरे दोस्त शहर से उसके यहाँ आ रहे हैं…. खैर….

जिस दिन हम सभी को उसके गाँव को निकलना था, उससे पिछली रात में सभी मेरे यहाँ रूककर सभी तैयारी की… रात में एक ने बोला कि अगर वास्तव में वहां पर भूत हुए तो हम लोग क्या करेंगे… मैंने कहा कि तुम भी फालतू का फितूर पाले हो… मैंने कहा अगर वास्तव में होते तो लोग उस गाँव को छोड़कर कहीं और नहीं बस जाते…?

मेरा यह तथ्य बिल्कुल सटीक निशाने पर लगा था, इस तर्क ने अनचाहे पनपने वाले लगभग सभी प्रश्नों पर पूर्ण विराम सा लगा दिया था… पर यहाँ पर मैं आपको बताना चाहता हूँ कि प्रकृति में कुछ न कुछ ऐसा जरूर घटता रहता है जो हम इंसानों की बुद्धि के परे की बात होती है…. खैर…

अगले दिन सुबह करीब 10:30 बजे हमारी ट्रेन थी, जो कि राईट टाइम पर थी. हम तीनों ने अपने अपने सामान को ट्रेन में रखा और अपनी सीट पर जाकर बैठ गए…. थोड़ी ही में ट्रेन चलने लगी… यह सफर लगभग 06 से 08 घंटे का होने वाला था. इसलिए हम तसल्ली से बैठकर ट्रेन से बाहर निहार रहे थे….

पहले स्टेशन पर जब ट्रेन रुकी तो कुछ लोग उतरे और कुछ नए लोग चढ़े… यह पूरी तरह से स्वाभाविक था…. इसी तरह से करीब आगे आने वाले 5 स्टेशनों पर हुआ… सब कुछ नार्मल था…. फिर आता है… अगला स्टेशन… यहाँ कुछ अजीब बात थी… सबसे पहली बात तो यह थी कि न तो कोई यहाँ पर उतरा और न ही यहाँ से कोई चढ़ा…. और इस बात का पता मेरे पड़ोस में बैठे एक बुजुर्गवार से चला… वे अपने साथी से कह रहे थे….

“देखेउ आजो कौनो नाई चढ़ा औउर नाही उतरा” इत्तेफाकन उनके यह शब्द मेरे कान में भी पड़ गए…. अब मुझसे रहा ही नहीं गया… आख़िरकार मैंने उन बुढऊ से पूँछ ही लिया कि… दादा जी आप अभी जो बात कर रहे थे क्या आप मुझे उसके बारे में कुछ बता सकते हैं?….. इस पर वे बोल कौन सी बात….?

मैंने कहा कि अभी आप अपने मित्र से कह रहे थे कि देखेउ आजो कौनो नाई चढ़ा औउर नाही उतरा. जब मेरे कानों में आपकी यह बात पड़ी तो मुझे कुछ अलग ही महसूस हुआ…. लगा जैसे कि कुछ तो अजीब है या कुछ ऐसा है कि जिसे हम नहीं जानते….? इस पर उन दादा ने हंस कर बात को टालने की कोशिश की और कहने लगे कि मेरा दिमाग कभी-कभी बहक जाता है…. और अनजाने में ही कुछ भी बड-बड निकल जाती है….?

वैसे देखने से वो ऐसे नहीं थे कि उनका मानसिक संतुलन बिगड़ा हो…. अब जिज्ञासा वश हम तीनों में जानने की तीव्र इच्छा पनप चुकी थी. हम जनाना चाहते थे कि आखिर पूरा मामला क्या है…? इतने में वो बुढऊ ने हम से पूंछा आप लोग कहाँ जा रहे हो…. तो हमने बता दिया कि हम अपने दोस्त के यहां 01 हफ्ते के लिए घूमने के लिए जा रहे हैं जो अभी 02 स्टेशन आगे है….

जैसे ही हमने बताया कि हम फला गाँव जा रहे हैं… उन दादा के चहरे की हवाइयां उड़ गई…. उन्होंने पूंछा कि वहां जाने से पहले उस जगह की जानकारी ली थी…. हमने कहा नहीं…. उनके प्रश्न उस जगह के प्रति संदेह उत्पन्न कर रहे थे जहाँ हमें जाना था… 

इसके बाद उन्होंने बताया कि आप लोग जहाँ जा रहे हो… पता है वहां भूतों का तांडव होता है…. इस पर मैंने सोचा ये ग्रामीण लोग बस ताकियानुसी बातों को ही मानने वाले हैं… जबकि वास्तविकता इससे काफी अलग हो सकती है…. खैर….

भूतों का तांडव – एक अनुभव के पार्ट-1 में इतना ही. आशा है आपको पहला पार्ट रोचक जरूर लगा होगा. जल्द ही हम इसका अगला पार्ट अपलोड कर देंगे… अपलोड की नोटिफिकेशन पाने के लिए वेबसाइट को subscribe करना न भूलें.. इसके साथ ही यदि आप कोई प्रतिक्रिया देनी है तो comment box में लिखें….

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