मनोविज्ञान का इतिहास | History of Psychology in hindi

मनोविज्ञान यानी Psychology (साइकोलॉजी) को परिभाषित किया जाता है, एक ऐसा वैज्ञानिक अध्ययन जिसका फोकस हमारे दिमाग उसकी कार्य-प्रणाली (Function) और हमारे द्वारा किए जा रहे स्वभाव व क्रिया-कलापों से होता है। इस प्रकार का डाटा या सूचना इकट्ठी करने के लिए मनोविज्ञान (Psychology), Neuroscience, Anthropology और Physiology जैसे क्षेत्रों आदि की मदद ली जाती है। 

लेकिन ऐतिहासिक दस्तावेज़ बताते हैं कि दिमागी क्रिया-कलापों में एक फिलोसॉफिकल इंटरेस्ट कई सारी पुरानी सभ्यताओं (Culture) में हजारों सालों से रही है। क्योंकि मनोविज्ञान चेतना का विज्ञान है और चेतना को समझना लगभग हर इंसान को आकर्षित करता है।

मनोविज्ञान-का-इतिहास-History-of-Psychology

चेतना या मनोविज्ञान की समझ के काफी सारे दस्तावेज़ प्राचीन मिश्र के मेडिकल लेखों और हिंदू धर्म वैदिक लेखों में भी मिले हैं। पाश्चात्य सभ्यता (Western Culture) में भी मनोविज्ञान को विकसित करने में कई यूनानी दार्शनिकों का योगदान रहा है जैसे- प्लेटो, थेल्स, पाइथागोरस और अरस्तू

इसके साथ ही लगभग 2300 साल पहले हिप्पोक्रेट्स (Hippocrates) ने मनोविज्ञान की पहली अनौपचारिक व्यक्तित्व सिद्धांत (Unofficial Personality Theory) पेश किया था। जहां पर उन्होंने शरीर में मौजूद द्रव्यों को लोगों के स्वभाव के साथ जोड़ा। और वहीं 17वीं शताब्दी में फ्रेंच दार्शनिक रेने डेकार्ट ने द्विपक्षीय नीति पेश की थी।

जिसमें उन्होंने यह बोला था कि मानव अनुभव, मस्तिष्क और शरीर जैसी दो अलग वास्तविकता (Entities) के मिलन का परिणाम है। मनोविज्ञान का क्षेत्र, एक अलग क्षेत्र बनने से पहले इसी तरह से दार्शनिकता के रंग में रंगी (Philosophize) की जाती थी और यह सच है कि

मनोविज्ञान दार्शनिकता (Philosophy) से ही निकल या मिलकर बना है। मनोविज्ञान को औपचारिक (Official) अध्ययन का विषय, सन 1879 में वेल्हम वुण्ट (Wilhelm Wundt)” ने बनाया, जिन्हें आधुनिक मनोविज्ञान का पिता (Father) माना जाता है। 

नोट- मनोविज्ञान विषय में साधारण तौर पर पूंछा जाने वाला प्रश्न कि “मनोविज्ञान या साइकोलॉजी के जनक कौन है? तो इसका उत्तर –वेल्हम वुण्ट (Wilhelm Wundt)”

उनका लक्ष्य था वैज्ञानिक अनुसंधानों की मदद से दार्शनिकता की समस्याओं का समाधान करना और हमारे अवचेतन (Subconscious) अनुभव का अध्ययन करना। विशेष कर वुण्ट का मानना था कि हम अपने दिमाग के ढांचे को समझ सकते हैं… 

आत्मनिरीक्षण (Introspection) यानी खुद के बौद्धिक, दिमागी और भावनात्मक (Emotional) प्रक्रिया या प्रगति को निरीक्षण करने से। इस कार्य प्रणाली को नाम दिया गयासंरचनावाद (Structuralism)”

यह इतिहास में पहली बार हुआ था कि मनोविज्ञान को एक विज्ञान (Science) की तरह देखा जाने लगा, क्योंकि अब हम अपने बौद्धिक, दिमागी और भावनात्मक (Emotional) संबंधों या व्यवहार के परिणाम को निर्धारित कर सकते थे।

वहीं एक और शुरुआती और महत्वपूर्ण मनोवैज्ञानिक थेविलियम जेम्स जिन्होंने डार्विन की प्राकृतिक चयन सिद्धांत (Natural Selection Theory) का उपयोग किया मानव स्वभाव को समझाने के लिए,

और बताया कि हमारी भौतिक विशेषताओं (Physical Characteristics) की तरह हमारी मनोवैज्ञानिक विशेषताएं भी इस लिए विकसित (Evolve) हुई है क्योंकि वह क्रियाशील हैं और हमें किसी ना किसी तरह से एक क्रम विकास संबंधी (Evolutionary) फायदा देती हैं। इस सोच को नाम दिया गया व्यावहारिकता (Functionalism)

लेकिन आज के टाइम पर इस अध्ययन को बोला जाता है विकासवादी मनोविज्ञान (Evolutionary Psychology)”। इस बिंदु तक मनोविज्ञान का फोकस इंसानों के अवचेतन (Subconscious) अनुभव पर था। 

लेकिन सन 1800 में ऑस्ट्रिया देश के एक न्यूरोलॉजिस्ट (Neurologist) सिगमंड फ्रायड (Sigmund Frayed) ने मनोविज्ञान के क्षेत्र का पूरा नक्शा ही बदल दिया क्योंकि उनका लक्ष्य था एक ऐसा व्यक्तित्व सिद्धांत (Personality Theory) बनाना,

जिसका फोकस अवचेतन मस्तिष्क (Unconscious mind) पर हो। फ्रायड का मानना था कि हमारा स्वभाव बचपन की भूली हुई यादें और अवचेतन इच्छाओं (Unconscious Desire) से प्रभावित (Influence) होता है। इस पर रिसर्च करने के लिए उन्होंने सपने (Dreams) और  टॉक थेरेपी (Talk therapy) जैसी चीजों की मदद ली। इस अवचेतन और जागरूक अवस्था की सूचना (Subconscious and Conscious Information) को निकालने के लिए।

फ्रायड के इस दृष्टिकोण या योगदान को बोला जाता हैमनोविश्लेषण (Psychoanalysis)” और फ्रायड के इस दृष्टिकोण ने आगे आने वाले कई मनोवैज्ञानिकों को बहुत प्रभावित किया। जैसे Carleton, Erick Erickson और William James.

मनोविज्ञान के क्षेत्र में फिर से एक बड़ा बदलाव तब आया जब सन 1900 की शुरुआत में एक रूसी Physiologist “Ivan Pavlov”ने मनोविज्ञान में सचेतन (Conscious) और अवचेतन (Unconscious) मस्तिष्क से ध्यान हटा कर स्वभाव को मापना शुरू किया और मनोविज्ञान की एक नई शाखा को जन्म दे दिया। जिसे बोलते हैंआचरण या व्यवहारवाद (Behaviorism)”

कुत्तों पर हुए एक शोध में पावलोव (Pavlov) ने अनुभव किया कि कैसे एक मजबूत उत्तेजना (Strong Stimulus) जैसे खाना एक तटस्थ उत्तेजना (Neutral Stimulus) जैसे घंटी की आवाज के साथ मिलकर इस तटस्थ उत्तेजना की प्रतिक्रिया को भी ऐसा बना देता है जो पहले सिर्फ मजबूत उत्तेजना के साथ देखने पर मिलती है। 

उदाहरण के तौर पर जब आप कुछ खाना खाते हो, और वह आपको सूट नहीं करता और आपकी तबियत खराब होने लग जाती है। तब आपका दिमाग उस खाने की सुगंध और स्वाद को और आपके शरीर में होने वाली नकारात्मक प्रतिक्रिया को जोड़ देता है जिससे जब भी आपको दोबारा उस खाने की खुशबू या सुगंध आती है। 

तब आपको फिर से वही उबकाई या मितली की भावना होने लग जाती है। इस स्वभाव को बोलते हैं क्लासिकल कंडीशनिंग (classical conditioning) या पावलोव कंडीशनिंग (Pavlov conditioning)। आगे आने वाले कई मनोवैज्ञानिक जैसे John Watson और B.F. Skinner भी आचरण या व्यवहारवाद (Behaviorism) के काफी बड़े वकील (Advocate) थे।

लेकिन सन 1900 के बीच में कई मनोवैज्ञानिकों ने मनोविश्लेषण (Psychoanalysis) और आचरण या व्यवहारवाद (Behaviorism) जैसी अवधारणाओं (Concepts) की आलोचना (Criticize) की या करने लगे और इन्हें अपूर्ण बोलने लगे।

कई मनोवैज्ञानिक जैसे- अब्राहम मास्लो (Abraham Harold Maslow)” और कार्ल रॉजर्स (Carl Rogers)” अपनी-अपनी परिभाषाएँ बनाने लगे, जिनका लक्ष्य निजी जिम्मेदारी (Personal responsibility), लक्ष्य की स्थापना (Goal Setting) और आत्म-यथार्थीकरण (self-actualization) जैसी चीजें थीं।

साइकोलॉजी कि इस शाखा को बोलते हैं मानवतावादी मनोविज्ञान (Humanistic Psychology)। और इसका एक मॉडल हमें स्कूल में भी पढ़ाया गया है जिसका नाम हैमास्लो हायरार्की ऑफ़ नीड्स (Maslow Hierarchy of Needs)”

जिसमें मास्लो ने हमारी उन आवश्यकताओं का उल्लेख या जिक्र किया है जो हमें अलग-अलग काम करने के लिए और चीजों को प्राप्त करने के लिए प्रेरित करती है। 

यह ऐसा पहला आधिकारिक मनोवैज्ञानिक मॉडल है जो काफी समग्र (Holistic) है और हमारी लाइफ के हर पहलू पर फोकस करता। साल 1960 के आते-आते और टेक्नोलॉजी के बढ़ने की वजह से मनोविज्ञान की एक नई शाखा जोर पकड़ने लगी है।

जो है संज्ञानात्मक मनोविज्ञान (Cognitive Psychology)” जो हमारी स्मृति, ध्यान, अनुभूति (Perception), समस्या को सुलझाना (Problem solving), सोच जैसी क्षमता (Capability) को डाटा में कन्वर्ट करती है। मनोवैज्ञानिक प्रयोगों की मदद से है।

ताकि हम समझ सके कि कौन सी चीजें इन क्षमताओं को बढ़ाती है और कौन सी हमें नुकसान पहुंचाती हैं। सन 1970 में हुए तकनीकी विकास जैसे M.R.I. और परीक्षण (Test) स्कैन ने इस क्षेत्र को समझने के लिए हमारे दिमाग को और भी अच्छे से काबिल बनाया। उस टाइम से लेकर अब तक मनोविज्ञान के क्षेत्र में बराबर उन्नति देखने को मिली है।

हाल के शोध से पता चला है की मानव का अनुभव काफी अलग-अलग चीजों पर फोकस करता है जैसे- सभ्यता,  समाज, संबंध, धर्म, बचपन, सोशल मीडिया और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (A.I.).

आज के समय पर ज्यादातर मनोवैज्ञानिक अपने आपको किसी एक विचारधारा (School of thought) के साथ सहभागिता (Associate) नहीं करते बजाय इसके वो एक विशिष्ट क्षेत्र (Particular Area) में विशेषज्ञ बनना पसंद करते हैं और अलग-अलग विचारों को मनोवैज्ञानिक संदर्भों (Context) पर शोध करते हैं।

मनोविज्ञान या साइकोलॉजी से संबंधित कुछ प्रश्नोत्तर जो बार-बार इसको अध्ययन करने वालों से पूछे जाते हैं (FAQ.)-

मनोविज्ञान “मन का विज्ञान है किसने कहा?

पाम्पोनोजी (Pompanoji)

मनोविज्ञान शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग किसने किया?

प्लेटो (Plato)

साइकोलॉजी शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग किसने किया?

रुडोल्फ गॉलकाय (Rudolf Golkay)-1950 में प्रयोग किया.

मनोविज्ञान आत्मा का विज्ञान है किसने कहा?

प्लेटो और अरस्तू (Plato and Aristotle)

साइकोलॉजी की खोज किसने की थी?

विल्हेम वुण्ट (Wilhelm Wundt)

बाल मनोविज्ञान का जनक किसे कहा जाता है?

जीन पिअगेट (Jean Piaget)

साइकोलॉजी के जनक कौन है?

वेल्हम वून्ट (Wilhelm Wundt)

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें