मनोविज्ञान के अनुसार मनुष्य स्वभाव के रोचक तथ्य | Interesting Facts of Human Nature According to Psychology

शोधकर्ता सदैव मनुष्य स्वभाव क्या है? को समझने के लिए कुछ ना कुछ शोध और अध्ययन करते ही रहते हैं। लेकिन फिर भी वैज्ञानिकों के लिए सदियों से मनुष्य यानी किएक मनुष्य शोध का विषय रहा है। 

नमस्कार मित्रों स्वागत है आपका Fact Vigyan की इस पोस्ट में, ऐसी ही कुछ मनुष्य स्वभाव के बारे में मनोवैज्ञानिक रोचक तथ्यों को आज आप जानने वाले हैं क्योंकि मानव से जुड़ी हर गतिविधि पर वैज्ञानिकों की नजर रहती है और मनुष्य से जुड़ी हर बात पर खोज करते रहना, मनुष्य स्वभाव के प्रकार एवं उन्नति की ओर मानव सभ्यता को अग्रसारित करता है। 

हमारा मस्तिष्क काफी जटिल है जिसकी वजह से और प्रत्येक दिन कोई न कोई नई रिसर्च पब्लिश होती है, जो हमारी मानसिक क्षमताओं और हमारे स्वभाव के बारे में कुछ नये तथ्य बताती है। आज हम ऐसे ही कुछ तथ्यों के बारे में बात करेंगे जिसकी मदद से आप अपने बारे में कुछ नई चीजें सीख सकते हैं। 

मनोविज्ञान के अनुसार मनुष्य स्वभाव के रोचक तथ्य

ऐसी ही एक खोज मनुष्य स्वभाव की गई जिसकी वजह से मनोविज्ञान के हैरत-अंग्रेज रोचक तथ्य सामने आते हैं। कुछ तथ्य ऐसे होते जिनके बारे में जानकर कि आपको हंसी आएगी और हो सकता है कि आपको विश्वास भी ही नहीं होगा।

वहीं पर कुछ बातें ऐसी भी है जो कि काफी दिलचस्प है तो आज हम आपको ऐसे ही दिलचस्प मनुष्य स्वभाव के रोचक तथ्यों के बारे में बताएंगे। जिन्हें जानकर आप मनुष्य का व्यवहार समझ सकते हैं

मनुष्य स्वभाव मानसिक प्रयास-

मनोविज्ञान की मानें तो किसी भी इंसान को झूठ बोलने के लिए बहुत सारे तरीकों से प्रयास की जरूरत पड़ती है। इसी वजह से झूठ बोलने वाला शख्स प्राय: छोटे-छोटे शब्दों का प्रयोग करता है, बड़े-बड़े शब्दों का इस्तेमाल करने में उसे बड़ी मुश्किल होती है तथा बड़े स्तर पर मानसिक प्रयास करना पड़ता है।

मॉनिटरिंग (निगरानी और मूल्यांकन)-

अगर किसी शख्स को यह पता चले कि उसे किसी के द्वारा मॉनिटर किया जा रहा है तो वह बेहतर तरीके से काम करता है। क्यूंकी मॉनिटरिंग (निगरानी और मूल्यांकन) किया जाने वाला व्यक्ति मॉनिटर के सामने खुद को बेहतर दिखाना चाहता है।

monitoring-मॉनिटरिंग-निगरानी-और-मूल्यांकन

सच्चा विश्वास-

कई बार हम अच्छे दिखने वाले इंसान पर आसानी से विश्वास कर लेते हैं। फिर चाहे वह झूठ ही क्यों ना बोल रहा हो, लेकिन आप उस पर सच्चा विश्वास ही कर लेते हैं। यह अजीब है परंतु सत्य है।

मल्टी टास्किंग-

आमतौर पर हर कोई शक से एक बार में दो काम नहीं कर सकता है। लेकिन कई बार हम एक समय में दो काम करने की कोशिश करते हैं। ऐसा करने वाले को मल्टी टास्कर कहा तथा उसके द्वारा किया जाने वाला कार्य मल्टी टास्किंग कहलाता है। मगर सच्चाई यह है कि हम एक समय में एक काम पर ही फोकस कर सकते हैं।  

multitasking-मल्टीटास्किंग

मनुष्य का मूल स्वभाव-

वैज्ञानिकों ने शोध के जरिए इस बात का पता लगाया है। मोबाइल पर की गई 37% बातचीत झूठ पर आधारित होती है। वही फेस टू फेस की गई बातचीत सच्ची होती है। यह हमारा यानी कि मनुष्य के मूल स्वभाव को प्रदर्शित करता है।

वोटिंग की साइकोलॉजी-

वोटिंग लिस्ट में जिस उम्मीदवार का नाम सबसे ऊपर होता है, उसके जीतने के मौके बाकी सभी उम्मीदवार की तुलना में काफी ज्यादा होते हैं। इसकी वजह मानव मूल स्वभाव रोचक है। एक शोध के अनुसार मनुष्य की प्रकृति ही कुछ ऐसी होती है कि वह पहले नंबर की ओर सबसे ज्यादा आकर्षित होता हैं।

वोटिंग-की-साइकोलॉजी

आत्मविश्वास की कमी-

जिन लोगों में आत्मविश्वास की कमी होती है, वह दूसरे लोगों की कमियां या खामियाँ निकालते हैं और उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं। ऐसे लोग अपनी असफलताओं के लिए दूसरे लोगों को जिम्मेदार ठहराते हैं।

कठोरता-

आपकी बैठने वाली जगह आपके मूल स्वभाव को नियंत्रित करती है। अगर आप के बैठने वाली जगह कठोर है तो आपके स्वभाव में कठोरता आ जाएगी और आप के रिश्तों में भी जड़ता आ जाएगी, थोड़ा अजीब है लेकिन सच है।

जल्दबाजी में लिए गए फैसले-

जल्दबाजी में लिए गए फैसले अक्सर परेशानी में डाल सकते हैं। ऐसा लगभग सभी के साथ होता है जिसकी वजह से आगे चलकर आपको पछतावा हो सकता है। इसीलिए फैसला लेते समय खुद को शांत रखें।

ध्यान, साधना-

मनोविज्ञान की दृष्टी से साधारण मनुष्य ज्यादा से ज्यादा 10 मिनट तक ही अपने ध्यान को एक जगह पर केंद्रित कर सकता है। अगर आपको लगता है कि आप एक ही जगह पर काफी देर तक ध्यान लगा सकते हैं तो आप गलत है लेकिन हां, अगर आप काफी सालों से ध्यान, साधना या  प्रैक्टिस कर रहे हैं तो इसकी बात अलग है।

मीडिया-

आप जिस तरह से दुनिया को देखते हो, यह निर्भर करता है कि आप किस तरह की मूवी या T.V. शोज़ देखते हो। रिसर्च बताती है कि जो लोग क्राइम, जासूसी या तफ्तीश वाले T.V. शोज़ या ज्यादा समाचार देखते हैं।

वह लोग दुनिया में होने वाले गंभीर अपराध (serious crime) को overestimate करते हैं और इस तरह के धारावाहिक उन्हें यह सोचने पर मजबूर कर सकते हैं कि दुनिया एक काफी डरावनी जगह है और वह उसमें एक व्यक्ति में एक मोहरा (Victim) है जबकि जो लोग ज्यादा हास्य और कल्पनाओं पर आधारित धारावाहिक और फ़िल्म्स देखते हैं, वह लोग दुनिया को ज्यादा सकारात्मक देखते हैं। 

यह मनोवैज्ञानिक जीवन तथ्य इस बात को सुनिश्चित करता है कि जो कुछ भी मीडिया हम दैनिक आधार पर ग्रहण करते हैं वह हमारे वैश्विक नजरिये को सकारात्मक या नकारात्मक  प्रभावित करने की ताकत रखता है।

हमारी सोच-

हमारी सोच और हमारे दिमाग की चीजों को समझने की योग्यता हमारे संस्कृति पर निर्भर करती है। एक सामाजिक मनोविज्ञान के अनुसार- कि किस तरह से एशियाई देशों के लोगों की मानसिक क्षमता अलग होती है पश्चिमी देशों के लोगों से। 

यानी दोनों संस्कृतियों की तत्त्वज्ञान, सामाजिक ढांचा, धर्म या मजहब और शिक्षा प्रणाली काफी अलग है सिर्फ इसलिए कि दोनों जगहों पर रहने वाले लोगों को अलग-अलग तरह की मुश्किलें झेलनी पड़ती है।

इसी वजह से एशियाई देशों जैसे भारत, जापान, कोरिया और चीन के लोगों की विचारधारा और मुश्किलों का समाधान करने का दृष्टिकोण ज्यादा समग्र (holistic) होता है और वे असंबंधित दिखने वाली चीजों में भी छुपे हुए तथ्यों, रहस्यों को ढूंढ पाते हैं। जबकि पश्चिमी देशों की विचारधारा ज्यादा विश्लेषणात्मक होती है और वह हर वस्तु को बाकी चीजों से असंबंधित और अलग मानते हैं।

जैसे- अगर आप पश्चिमी लोगों को एक फोटो दिखाओ तो हो सकता है कि वह उस फोटो में मुख्य वस्तु पर ही फोकस करेंगे, जबकि एशियाई संस्कृति में बढ़े हुए लोग फोटो के पृष्ठभूमि और उसके संदर्भों पर भी अपना ध्यान केन्द्रित करेंगे कि उस फोटो का व्यापक संदेश (overall massage) क्या है। 

घनिष्ठ संबंध-

हम एक समय पर सिर्फ 150 लोगों के साथ ही घनिष्ठ संबंध रख सकते हैं। यह तथ्य विकासवादी मनुष्य जाति विज्ञान (Evolutionary Anthropology) से निकल कर आता है जहां पर शोधकर्ता हमेशा से यह जानना चाहते हैं कि सामान्यतः हर प्रजाति के सामाजिक समूह में कितने अवयव या मेंबर होते या हो सकते हैं। 

इसे पता करने के लिए शोधकर्ताओं ने हर जानवर के दिमाग का साइज और उनकी स्थिर संबंध के बीच का जुड़ाव संबंध (connection) ढूंढा। पता लगा कि हमारे पूर्वज के सामाजिक समूह या सोशल ग्रुप हमेशा छोटे और उनकी आपस में घनिष्ठ संबंध बनाकर रहते थे।

सब लोग एक दूसरे को जानते थे और समूह का उत्तरजीविता (survival) बढ़ाने के लिए एक दूसरे की मदद करते थे। उनके यह समूह बहुत लंबे समय तक 100 या 150 सदस्यों या मेम्बर्स के ऊपर कभी गया ही नहीं। यही कारण है कि क्यों हम भी अभी तक सीमित लोगों के साथ निकट संबंध (close connection) बनाने के लिए ही बाध्य हैं।

फैसलों पर विचार-विमर्श-

सामान्यतः हमें लगता है कि हम अपने फैसलों पर विचार-विमर्श, बहुत सोच समझकर और तर्क से लेते हैं पर मनोविज्ञान बताती है कि हम अपने ज़्यादातर फैसले अनजाने में ही लेते हैं। 

उदाहरण के तौर पर- अगर आप नया Phone खरीदने की सोच रहे हो तो आप इस बात का ध्यान रखोगे कि वह Phone आपकी हर जरूरत को पूरा कर सके उसका मूल्य आपके budget के अंदर ही आए और उसे बनाने वाली company विश्वसनीय हो। 

लेकिन इन तथ्यों के पीछे भी कई अधिक अपेक्षाए भी होती हैं जो आपको बताती है कि आप वही उत्पाद product खरीदो जो आजकल trend में है या फिर अगर आप हमेशा से यह बोलते आए हो की आपको छोटे Phones पसंद है तो आपका दिमाग आपके इसी विचार के साथ स्थिर रहने के लिए प्रेरित करेगा।

Response reactance-

जब भी हमें एक rule बहुत strict लगता है या फिर जब हमें ऐसा लगता है कि हमसे हमारी freedom छीनी जा रही है। तब हमारा मन करता है कि हम सिर्फ वही rule नहीं बल्कि बाकी rule भी तोड़े। 

शोधकर्ता हमारे इस behavior को बोलते हैं response reactance. यह हमें बताता है कि क्यों किसी पर भी गुस्सा करके और उन्हीं force करके अपनी बात मनवाना कभी effective नहीं होता। हम दूसरों की बात सिर्फ तभी मानना prefer करते हैं। जब हमें लगता है कि हम वह काम अपनी मर्जी से कर रहे हैं। 

Patterns ढूंढने की कोशिश-

हम जिंदा या lifeless चीजों में human families face का patterns ढूंढने की कोशिश करते हैं। जैसे कई बार हमें बादलों में एक शक्ल या कोई जानवर दिखने लग जाता है। जिन लोगों को इसके पीछे की psychology ही नहीं पता होती है वह ऐसे patterns को चमत्कार मानते हैं

पर psychology में यह तथ्य सामान्य एवं साधारण है और वैज्ञानिक इसे बोलते हैं- Pareidolia. Evolution की वजह से हमारा दिमाग निरंतर अपने environment में दूसरे इंसान, जानवर या काम आने वाले औजार ढूंढता रहता है

जिसकी वजह से इन से मिलते जुलते patterns भी हमारे दिमाग को ऐसे सिग्नल देते हैं। जैसे हमें असली में कोई इंसान या जानवर दिखा हो।

Storage memories-

आपकी सबसे important और storage memories गलत है। अगर मैं आपसे आपके स्कूल का पहला दिन, आपका first Love या किसी दुर्घटना के बारे में पूछो, तो आप झट से उसके बारे में बता दोगे पर शोध के अनुसार आपको इन memories का ज्यादातर हिस्सा inaccurately याद है। 

science बताती है कि हमारी सबसे पक्की memories को flush-able बोलते हैं पर हमारी इस तरह की memories भी errors से भरी होती है और यह इसलिए होता है क्योंकि हमारा काम होता है की अपनी memory से ऐसी जरूरी information बाहर निकालना जो future में हमारे काम आ सके

जिसकी वजह से आपको ज्यादातर यह याद नहीं रहता कि आपके पास में exactly क्या हुआ था? बल्कि आपको यह याद रह जाता है कि आपने उस event को कैसे interpret  करा था?

Developing brain-

सामान्यतः हमें वह गाने सबसे ज्यादा अच्छे लगते हैं जो हमने अपने स्कूल या कॉलेज टाइम पर सुने थे और यह इसलिए होता है क्योंकि गाने सुनते time हमारा दिमाग Dopamine और उसके जैसे ही अच्छा feel कराने वाले chemical रिलीज करता है और 12 से 22 साल की उम्र के बीच हमारा developing brain इन chemicals को

और भी ज्यादा मात्रा में पैदा कर रहा होता है जिसकी वजह से हर वस्तु ज्यादा important लगती है। जिस कारण हम सालों बाद भी उन्ही पुराने गानों को पसंद करते हैं। 

Environment को scan करना-

आप अपने आपको Food, Sex या Danger पर Attention pay करने से नहीं रोक सकते हैं। हमारा यह स्वभाव हमारे दिमाग के सबसे पुराने हिस्से से आता है और हमें जिंदा रखने के लिए वह हर समय अपने environment को scan कर रहा होता है 

और सोच रहा होता है कि क्या मैं इसे खा सकता हूं?, क्या इसके साथ संभोग कर सकता हूं? या क्या मुझे इससे कोई खतरा है? survival के लिए इन प्रश्नों के उत्तर बहुत मायने रखते हैं

क्योंकि खाने के बिना हम मर जाएंगे, Sex के बिना हम अपनी प्रजाति को आगे नहीं बढ़ा पाएंगे और अगर हमारी जान खतरे में है तो पहले दोनों प्रश्न तो matter ही नहीं करते। 

ज़्यादा responsible और kind-

हमें दूसरों पर पैसे खर्च करने में ज्यादा खुशी मिलती है बजाय अपने पर खर्च करने में। सामान्यतः हम में से ज्यादातर लोग यह मानते हैं कि अपनी पसंद की चीजें लेना और खुद को prioritize करना जाहिर है। यह एक long-term process का जरूरी है 

पर science बताती है कि यह सच नहीं है क्योंकि दूसरों पर खर्च किया गया पैसा हमें अपने बारे में अच्छा feel कराता है। हम ऐसे दूसरों के आगे ज़्यादा responsible और kind दिखते हैं और इसके साथ ही दूसरों की मदद करने से हमारे सोशल रिलेशनशिप्स भी improve होते हैं 

और साइंस इस बारे में बिल्कुल clear है कि हमारी long-term खुशी के लिए सबसे important चीज अच्छे relationship ही होते हैं ना कि money या फिर उस से खरीदी हुई चीजे है। 

ज़्यादा impulsive-

जब आप दुखी या डरे हुए होते हो तो Brands या Logos अलग से प्रभावित करते हैं……..  क्योंकि जब भी हम खुश होते हैं तब हम ज़्यादा impulsive बन जाते हैं। हम नई और risky चीजें ट्राई करने में कम हिचकिचाते हैं और पैसे भी ज्यादा खर्च करते हैं।

पर जब भी हम Sad feel कर रहे होते हैं तब हमें कुछ familiar चीज चाहिए होती है और हम नई तरह की चीजों से दूर रहना prefer करते है। यह चीजें Ice Cream flavor से लेकर Movies तक कुछ भी हो सकती है। 

Science बताती है कि हमारा यह व्यवहार हमारे Dopamine levels पर based होता है। जब हमारे दिमाग में Dopamine ज्यादा होता है तब वह हमें ज्यादा extroverted बना देता है और तब हमें Unknown environment में जाने से कम डर लगता है। 

जैसे- एक पार्टी के बारे में सोचिये- जब आप खुश होते हो, आप ज्यादा drink करते हो और कुछ भी खा लेते हो, पर जब आपका Dopamine कम हो जाता है जैसे एक stressful दिन के बाद तब आप अपनी पुरानी habits पर ही फोकस करते हो और अपनी इन्हीं emotions की वजह से shopping करते time उन brands को खरीदते हो जिन्हें आप पहले से ही जानते हो।

अंत में-

वैसे यह प्रत्येक मनुष्य के बारे में चौका देने वाली वह बातें जो कि कम ही लोग जानते हैं। मनुष्य भगवान की सबसे अनोखी रचना है जो इस तरह के आश्चर्य से भरी पड़ी है।

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धन्यवाद!

जय हिंद! जय भारत!

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