सफलता पाने सटीक का शोध | Research of Success

सफलता पाने का शोध (Research of Success): कुछ समय पहले मनोवैज्ञानिकों ने यह नोटिस किया कि 90% से भी ज्यादा के लोग अपने जीवन में अपनी मनचाही सफलता पाने में असफल हो रहे थे। उन लोगों को सच्चा प्यार नहीं मिल रहा था,

कोई रोजगार (Job) नहीं मिल रही थी, Office में प्रमोशन नहीं मिल रही थी और कई छात्रों को अच्छे कॉलेज में दाखिला (Admission) नहीं मिल रहा था। संक्षिप्त में कहे तो उन्हे उनकी सारी इच्छाओं और सपनों को पूरा करने में सफलता नहीं मिल रही थी।

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सफलता पाने का सटीक शोध | Research of Success

ऐसे ही कई सारे अनसुलझे रहस्यमय सवालों का पता लगाने के लिए डॉक्टर गिल मैथिस (Gil Mathis) ने एक मनोवैज्ञानिक शोध किया। जिसमें उन्होंने 267 लोगों को बुलाया, जिनमें छात्र, प्रोफेसर, वकील, इंजीनियर, व्यापारी और बैंकर शामिल थे। 

डॉक्टर गिल मैथिस ने इस सारे लोगों को दो ग्रुप में डिवाइड कर पहले ग्रुप को यह कहा कि वह अपनी इच्छाओं, सपनों और लक्ष्य की कल्पना (visualize) करना शुरू करें।

वही दूसरे ग्रुप को यह कहा गया कि वे अपनी इच्छाओं, सपनों और लक्ष्य को पूरे इमोशन के साथ एक पेपर पर लिखना शुरू करें और इन दोनों ग्रुपों को इसी तरीके को 6 महीने तक फॉलो करने के लिए कहा गया।

इसी वजह से ग्रुप एक के लोगों ने हर रोज 6 महीने तक सोने से पहले अपने सपनों या इच्छाओं को कल्पना (visualize) करते रहते थे और वहीं दूसरी तरफ दूसरे ग्रुप के लोग हर रोज रात को सोने से पहले अपने लक्ष्य और सपनों को पूरे इमोशन के साथ पेपर पर लिखते रहते थे।

आप यकीन नहीं करोगे। मगर ठीक 6 महीने बाद उन 267 लोगों की लाइफ को डॉक्टर गिल ने फिर से मूल्यांकन (Examine) किया तो वो पूरी तरह से हैरान (Shocked) हो गए क्योंकि डॉक्टर गिल ने यह पाया कि दूसरे ग्रुप में जिन-जिन लोगों ने हर रोज रात को अपना लक्ष्य और सपनों को पूरे इमोशन के साथ पेपर पर लिखा था, उन सभी लोगों ने अपने जीवन में 100% सफलता हासिल कर ली थी।

वहीं दूसरी तरफ ग्रुप एक के लोग जो हर रात को सिर्फ अपने लक्ष्य की ही कल्पना (visualize) करते थे। उनके जीवन में अभी भी कोई खास बदलाव नहीं आए थे। यानी कि ग्रुप एक के 55 से भी ज्यादा पसंद के लोग अभी भी असफलता का सामना ही कर रहे थे।

तो अब सवाल यह उठता है कि ऐसा क्या कारण था कि दूसरे ग्रुप के लोगों को सिर्फ 6 महीने में चमत्कारिक रूप से सफलता मिल रही या गयी थी। जबकि वहीं दूसरी तरफ पहले ग्रुप के लोग अभी भी असफलता में ही जीवन काट रहे थे। डॉ0 गिल ने इस चमत्कारी तथ्य का कारण ये बताया कि हमारे दिमाग के दो भाग होते हैं।

एक बायां दिमाग (Left Brain) और दायां दिमाग (Right Brain) और यह दोनों हेमिस्फीयर (Hemisphere) एक दूसरे के साथ बहुत ही बारीक तंत्रिका तंतुओं (Neural fiber) से जुड़े हुए होते हैं। वहीं बारीक तंत्रिका तंतुओं (Neural fiber) की मदद से ही सूचनाओं का आदानप्रदान (Information Exchange) करते हैं।

तो हुआ ये कि जब दूसरे ग्रुप के लोगों ने हर रोज रात को सोने से पहले अपनी सपनों या लक्ष्य को इमोशन के साथ वास्तव में (Practically) पेपर पर लिखते थे जिसकी वजह से उनके दोनों दिमागों के हेमिस्फीयर (Hemisphere) के बीच में एक मजबूत भावनात्मक जुड़ाव (Strong Emotion Callosum) बना।

जिसकी वजह से उनके दायें दिमाग (Right Brain) की कल्पनाशक्ति (Imagination) का मजबूत भावनात्मक विचार उनके बायें दिमाग (Left Brain) तक पहुंचा। जो कि  तार्किक सोच (Logical thinking) करता था। जिसकी वजह से उनके दोनों दिमागों के बीच में एक मजबूत भावनात्मक जुड़ाव का संबंध (Connection) बन गया।

जिसके कारण उनका यह मजबूत भावनात्मक जुड़ाव का संबंध (Connection) पूरे शरीर में यात्रा करता था और पूरे शरीर की हर एक कोशिका के साथ संवाद(Communicate) करता था। उसने दूसरे ग्रुप के सारे लोगों के पूरे शरीर को उनके लक्ष्य के लिए पूर्ण रूप से जागरूक (Aware) कर दिया था।

चूँकि दूसरे ग्रुप के लोगों ने रात में अपने लक्ष्य को पेपर पर लिखा था, उसके बाद वो सो जाते थे जिसकी वजह से सो जाने के बाद भी पृष्ठभूमि (Background) में उनका दिमाग लगातार(Continuously) काम करता रहता था। जिसकी वजह से उनके दिमाग में यह मजबूत भावनात्मक विचार को चेतन और अवचेतन (Conscious & Subconscious) स्तर पर बहुत ही अच्छी तरीके से स्वीकार कर लिया गया था।

जिस कारण उनका लक्ष्य या सपना अब सिर्फ कल्पना-शक्ति नहीं रहा। वह वास्तव में उनके तार्किक दिमाग के साथ संबंध बनाकर वास्तविकता में रूपांतरित होने के लिए पूरी तरह तैयार हो चुका था, जिसकी वजह से यह हुआ कि जब ये लोग सुबह उठते थे तो उन्हे अपने लक्ष्य के अलावा और कुछ दिखता ही नहीं था।

आप यह कह सकते हो कि उनकी  पूरी एकाग्रता (Focus) उनके लक्ष्य पर ही अटक जाता थी जिस कारण वो ना चाहते हुए भी पूरे दिन सिर्फ और सिर्फ अपने लक्ष्य को पाने के लिए काम करते रहते थे। इसी वजह के कारण उन्हें सफलता प्राप्त हुई।

वहीं दूसरी तरफ अगर हम पहले ग्रुप की बात करें तो उन्होंने अपनी इच्छाओ और लक्ष्य को रोज रात में 6 महीने तक सिर्फ और सिर्फ अपनी कल्पना में अनुमान लगाया था जिसकी वजह से उनके सिर्फ दायें दिमाग (Right Brain) का ही इस्तेमाल हुआ जो सिर्फ कल्पना विचार (Imagination Thoughts) ही निर्मित करता है।

मगर उनका तार्किक दिमाग (Logical Brain) तो इस्तेमाल ही नहीं हुआ यानी कि उनके लिए दायें दिमाग और बायें दिमाग के बीच में कोई तंत्रिका तंतुओं (Neural fiber) का संबंध बना ही नहीं या कभी हो ही नहीं पाया। इस वजह से उनका लक्ष्य या इच्छा उनके चेतन और अवचेतन (Conscious & Subconscious) स्तर पर पंजीकृत नहीं हो पाया।

जिस कारण जब वो सुबह सो कर उठते थे तो उनका दिमाग उनके लक्ष्य या कल्पना में किए गए विचार को भूल चुका होता था। या फिर किसी ने नए विचार से बदल चुका होता था। जिस कारण उनके दिमाग कि एकाग्रता (Focus) कभी भी अपने लक्ष्य प्राप्ति के लिए साफ ही नहीं पाया और इसी वजह से उनके बहुत से काम या प्रयास सामान्य स्तर के ही रहे। जिस कारण उन पहले ग्रुप के लोगों को सफलता नहीं मिल पायी।

उदाहरण के तौर पर टोरंटो विश्वविद्यालय (University of Toronto) में एक लड़का पढ़ता था। वो पढ़ाई ठीकठाक था और रोज कॉलेज भी जाता था। मगर एक दिन ना जाने क्यों क्लास के बीच में ही उसे नींद आ गई और वह सो गया चूँकि वह लास्ट बेंच पर बैठा था। इसी वजह से टीचर ने उस पर कोई खास ध्यान नहीं दिया और बाकी बच्चों को गणित सिखाते रहे।

मगर लेक्चर (Lecture) के आखिर में टीचर ने सभी छात्रों को गणित एक सबसे कठिन सवाल ब्लैकबोर्ड पर लिख कर दिखाया और कहा कि बच्चों यह गणित का सवाल बहुत ही कठिन है और आज तक मै भी इसे सुलझा (Solved) नहीं पाया हूँ। मगर फिर भी तुम सब इसे सुलझाने या हल करने की कोशिश जरूर करना।

बच्चों ने बड़ी मेहनत कि मगर हल नहीं निकाल पाए। तभी लेक्चर खत्म होने की घंटी बजी और टीचर क्लास छोड़कर चले गये। मगर तभी घंटी की आवाज सुनकर लास्ट बेंच पर सोया हुआ वह लड़का भी जाग गया। उसने देखा कि टीचर ने बोर्ड पर कोई गणित का सवाल लिखा है। जो कि स्टूडेंट्स का Home-Work था।

उस लड़के ने जल्दी से सवाल को अपनी नोट बुक में नोट कर लिया और घर आकर सवाल को सलझाने या कल करने की कोशिश करने लगा। मगर मजेदार बात यह थी कि उस लड़के ने टीचर द्वारा कही गई बात तो सुनी ही नहीं थी। उसे तो यह पता ही नहीं था कि यह सवाल काफी कठिन है और जिसे कोई भी अभी तक सुलझा या हल नहीं कर पाया है।

मगर उस बेचारे लड़के के दिमाग में तो बस एक ही बात चल रही थी। आज तो कैसे भी करके इस गणित के सवाल को सुलझाना या हल करना ही है। नहीं तो कल कॉलेज में जाकर टीचर की मार पड़ेगी। उसने कैसे भी करके अपना Home-Work खत्म किया और अगले दिन कॉलेज पहुंचा और डरते-डरते अपना Home-Work टीचर को दिखाया।

अब हुआ क्या कि टीचर Home-Work देखकर पूरी तरह से हैरान (Shocked) हो गए, उनके तो होश ही उड़ गए। क्योंकि लड़के ने सच में बड़ी सटीकता से सवाल को सुलझा या हल कर लिया था। इस पर उसे इनाम भी दिया गया। अगर आप इस लड़के की कहानी को थोड़ा ध्यान से देखोगे तो आपको यह पता चलेगा कि लड़का क्लास में तो सो गया था।

जिसकी वजह से उसे सच्चाई का पता ही नहीं था कि उसे यूनिवर्सिटी का सबसे कठिन गणित का सवाल हल करना है। उसके दिमाग में तो एक ही बात चल रही थी कि मुझे तो बस अपना Home-Work खत्म करना है, ताकि अगले दिन मुझे कॉलेज में मार खानी ना पड़े।

वहीं दूसरी तरफ क्लास के सारे बच्चों के दिमाग में टीचर की कही गई बात स्थिर हो चुकी थी कि यह गणित का सवाल तो टीचर भी नहीं हल कर पाये तो भला हम क्या उखाड़ लेंगे। जिस कारण उनके दिमाग ने टीचर की बात को सच मान कर कोई ज्यादा प्रयास ही नहीं किया और इसी वजह से वह सब स्टूडेंट सवाल को हल नहीं कर पाए।

जबकि वहीं दूसरी तरफ इस लड़के के दिमाग में ऐसी कोई मानसिक विसंगति (Mental barrier) तो थी ही नहीं। इसी वजह से उसने हंसते-खेलते हुए सबसे कठिन गणित के सवाल को सुलझा या हल कर लिया।

तो दोस्तों यही Same चीज होती है। “जब आप अपने लक्ष्य या सपनों को रोज रात को पूरे इमोशन के साथ कागज पर लिखते हो” तो आपके दिमाग में महा-संयोजिका (Corpus Callosum) होता है। जिसकी वजह से आपका तार्किक दिमाग आपके सपने को सचमानकर उसे पूरा करने में आपकी पूरी तरह से मदद करता है ठीक उस लड़के की तरह।

और ठीक इस लड़के के ही तरह आपको भी चमत्कारिक रूप से सफलता मिलनी शुरू हो जाती है। मैं यह नहीं कह रहा कि कल्पना (Visualization) करना ही गलत है, कल्पना करना अपनी जगह पर बिल्कुल सही है मगर कल्पना से विचारों को अवचेतन मन (Subconscious Mind) से जोड़ने में बहुत ज्यादा समय लग जाता है।

क्योंकि कल्पना में हमारा दिमाग के सिर्फ हमारे दायें हिस्से का ही इस्तेमाल करता है, मगर हमारे दिमाग का बायां हिस्सा जो तार्किक सोच (Logical Thinking) करता है। उसके बीच में तो कोई तंत्रिका तंतुओं (Neural fiber) का कोई संबंध बनता ही नहीं है या  कोई जुड़ाव होता ही नहीं है। जिसकी वजह से विचारों को असलियत में साकार करने और सफलता पानेमें हमें न जाने कितना समय लग जाता है?

इसी वजह से मनोवैज्ञानिक इस लिखने के तरीके (Writing Method) को ज्यादा प्राथमिकता और वरीयता (Priority) देते हैं। यहां पर और एक गलत फहमी आपकी दूर करना चाहूंगा कि सिर्फ रात को अपने लक्ष्य या सपनों को पेपर पर लिखने से आपके सपने सच नहीं होते।

आपको अगली सुबह अपने लक्ष्य या सपनों को पाने के लिए मेहनत तो करनी ही होगी। जिस तरह उस लड़के ने गणित के सवाल को हल करने में मेहनत की थी। ठीक उसी तरह आपको भी मेहनत तो करनी ही होगी।

क्योंकि बिना प्रयास किए आपको सफलता मिल ही नहीं सकती। यह एक सच्चाई है।

आपको साइंटिफिक उदाहरण के साथ समझता हूं। दोस्तों आपको यह जानकर हैरानी होगी। मगर दुनिया के श्रेष्ठ मनोवैज्ञानिकों ने यह साबित किया है कि “Hard work beats Talent” यानी कि आपकी मेहनत के सामने बड़े से बड़ा प्रतिभावान और योग्य इंसान (Talent Human) भी सर झुकाता है।

महान चित्रकार पिकासो (Great Painter Picasso) को तो आप जानते ही होंगेबचपन में पिकासो का एक बहुत ही अच्छा दोस्त हुआ करता था जो बहुत ही प्रतिभाशाली था उसके हाथों में मानो ऊपर वालों ने जादू दिया हो, वो बस अपना पेंटिंग ब्रश उठाता और मजेदार पेंटिंग बना देता था।

उसे देखकर पिकासो भी यह सोचने लगे कि मुझे भी एक दिन ऐसा ही जादुई चित्रकार बनना है। मगर सच्चाई तो यह थी कि पिकासो के पास ऐसी कोई प्रतिभा नहीं थी। वह तो आड़ी-टेढ़ी लकीरों के साथ पेंटिंग बनाते थे। मगर उन्होने कभी भी हार नहीं मानी। पिकासो दिन पर दिन बस पेंटिंग का अभ्यास करते गये। लाखों पेपर बर्बाद किए पर अभ्यास से रुके नहीं। उन्होने 30 सालों तक पेंटिंग बनाने की जी-तोड़ मेहनत की।

 जिसका नतीजा यह आया कि 30 साल के बाद आज जब पिकासो एक छोटी सी पेंटिंग भी बनाते हैं तो वह करोड़ों और अरबों में बिकती है। जबकि वहीं दूसरी तरफ पिकासो का वह दोस्त अपने प्रतिभा या टैलेंट के सहारे ही बैठा रहा जिसकी वजह से उसने कभी भी अपने टैलेंट को निखारने की कोशिश ही नहीं की।

जिस कारण उसका विकास और वृद्धि (Growth) हो ही नहीं पाई और यही वजह है कि पिकासो को पूरी दुनिया जानती है जबकि उनके उस टैलेंटेड दोस्त को आज कोई भी नहीं जानता। यही सच्चाई है जिसे इस सदी का “हर एक महान इंसान बहुत ही अच्छी तरीके से जानता है।” मेरा काम था आपको सच्चाई बताना।

इन मनोवैज्ञानिक प्रमाणों को आप अपने जीवन में सफलता पाने के लिए किस तरीके या तरह से इस्तेमाल/आकर्षित करते हैं और जीवन में कामयाब होने के लिए क्या करना चाहते हैं। यह आपको देखना है। उम्मीद करता हूँ कि आपको इस पोस्ट के माध्यम से सफलता के मूल मंत्र को खोजने में कुछ मदद तो अवश्य ही मिली होगी।

तो यह था हमारे आज के विषय सफलता पाने का आसान और सटीक शोध पर एक छोटा सा Article (motivational story in hindi) अगर यह Article आपको अच्छा लगा हो तो इसे अपने जरूरतमंद दोस्तों को Share करना न भूलें।

धन्यवाद!

जय हिंद! जय भारत!

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