प्रेम के ढाई अक्षर | Prem ke Dhai Akshar in hindi

प्रेम का एक स्वरूप

प्रेम के ढाई अक्षर के परिप्रेक्ष्य में यह कहना एकदम सटीक बैठता है कि प्रेम ही दुनिया का मजबूत एवं ठोस आधार है क्योंकि समाज में जहाँ भी और जो भी दिखाई पड़ता है सब कुछ प्रेम का ही एक स्वरूप होता है. इसे समझने के लिए आपको एक नये नजरिये या यों कहें कि समाज को नये दृष्टिकोण से देखने की तकनीक विकसित करने की आवश्यकता है. 

नमस्कार मित्रों स्वागत करता हूं आपका आज हम बात कर रहे हैं प्रेम के बारे में.

प्रेम-के-ढाई-अक्षर

जीवन का मूल आधार-

प्रेम, प्यार, love जो जीवन का मूल आधार है को परिभाषित कर पाना अत्यंत कठिन सा प्रतीत होता है क्योंकि प्रेम मात्र शब्द ही नहीं वरन प्रेम एक भावना है और भावना को लिपि में व्यक्त करना बड़े-बड़े कवियों, साहित्यकारों, लेखकों एवं विचारकों के लिए भी अत्यंत ही कठिन काम है. 

परंतु फिर भी कई महान विभूतियों ने प्रेम के ढाई अक्षर को समझने के लिए अपने-अपने मतों का प्रतिपादन किया है. 

प्रेम का स्वभाव-

प्रेम के ढाई अक्षर को समझने के लिए आपको प्रेम का स्वभाव समझना होगा। जिसके लिए आपको अपने स्वभाव को लचीला, क्षमावान, सहनशील और स्नेहमय बनाना होगा क्योंकि इतिहास को उठाकर देखिए हर महान व्यक्ति में प्रेम का स्वभाव अवश्य दिखाई देगा. मेरे इस कथन पर कुछ को आपत्ति हो सकती है

क्योंकि कुछ लोग ऐसे व्यक्तित्व को महान समझते हैं जिन्होंने मानवता के साथ-साथ प्रकृति को भी भीषण क्षति पहुंचाई है. इस पर मैं यही कहना चाहूंगा कि ये विक्षिप्त या संकीर्ण मानसिकता के अधीन हैं. इन्हें अपने विचारों पर मंथन करने के साथ-साथ अपने इतिहास को जानने की आवश्यकता है. 

प्रेम करने या पाने की कामना-

सामान्यतः प्रत्येक मनुष्य को प्रेम करने या प्रेम पाने की कामना होती है जिसे प्राप्त करने के लिए व्यक्ति समाज से संघर्ष करता है, यह बात कहाँ तक सही है? आइये विचार करते हैं जैसा कि आपने ऊपर के वाक्य को पढा है उससे ऐसा प्रतीत होता है कि…

जो कोई भी इस तरह के शब्दों को प्रयोग में ले रहा है वह वासना के वशीभूत है और प्रेम की शक्ति से अनभिज्ञ है. जबकि प्रेम को समझने के लिए आपको अपने विचारों का चिन्तन, मनन एवं गहनता के साथ मंथन करना अति आवश्यक है. 

सम्पूर्ण जीवन ही प्रेम को समर्पित-

कुछ विद्वानों ने प्रेम को उच्च स्तर तक परिभाषित या व्याखित करने में अपना विशेष योगदान दिया है. यहाँ पर मैं कुछ विद्वानों/कवियों का उल्लेख करने जा रहा हूं जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन ही प्रेम को समर्पित कर दिया और प्रेम की पराकाष्ठा के उच्चतम शिखर को प्राप्त कर इस संसार में अमर हो गए. ऐसे कवि/विद्वान हैं

सूरदास जी-

जो भगवान श्री कृष्ण के भक्त थे तथा इनकी रचनाओं में भगवान श्री कृष्ण के बाल/बचपन की लीलाओं एवं कहानियों का वर्णन मिलता है. श्री सूरदास जी जन्म से अंधे थे ऐसा माना जाता है. 

मीराबाई जी-

प्रेम की पराकाष्ठा का सबसे उत्तम उदाहरण अगर प्रस्तुत किया जाए तो मीराबाई जी का नाम प्रथम स्थान पर सुशोभित दिखाई देगा. जिन्होंने अपने भौतिक सुखों का त्याग कर भक्ति मार्ग से अपने इष्ट को प्राप्त किया और प्रेम की नई दिशा समाज को दिखाई. इनका जीवन चरित्र आज भी कई लोगों को प्रभावित करता है. 

कबीर दास जी-

कबीर दास इकलौते ऐसे कवि थे, जिन्होंने आजीवन समाज में व्याप्त आडंबरों पर कुठाराघात किया। वह कर्म प्रधान समाज के प्रवर्तक थे। लोक कल्याण हेतु उनका समस्त जीवन था। कबीर को वास्तव में एक सच्चे विश्व – प्रेमी का अनुभव था। समाज में कबीर को जागरण युग का अग्रदूत कहा जाता है। 

यहाँ पर मैं कुछ कबीर दास जी के दोहों का वर्णन करने जा रहा हूँ जो आपको प्रेम समझने के साथ-साथ सफलता दिलाने में भी उपयोगी सिद्ध होंगे-

गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पांय।

बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो बताय॥

अर्थ: गुरु और गोविंद (भगवान) दोनों एक साथ खड़े हैं। पहले किसके चरण-स्पर्श करें। कबीरदास जी कहते हैं, पहले गुरु को प्रणाम करूंगा क्योंकि उन्होंने ही गोविंद तक पहुंचने का मार्ग बताया है।

पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।

ढाई आखर प्रेम का“, पढ़े सो पंडित होय॥

अर्थ: बड़ी-बड़ी पुस्तकें पढ़कर संसार में कितने ही लोग मृत्यु के द्वार पहुँच गए, पर सभी विद्वान न हो सके। कबीर मानते हैं कि यदि कोई प्रेम या प्यार के केवल ढाई अक्षर ही अच्छी तरह पढ़ ले, अर्थात प्यार का वास्तविक रूप पहचान ले तो वही सच्चा ज्ञानी होगा।

तन को जोगी सब करें, मन को बिरला कोई।

सब सिद्धि सहजे पाइए, जे मन जोगी होइ॥

अर्थ: शरीर में भगवे वस्त्र धारण करना सरल है, पर मन को योगी बनाना विरले ही व्यक्तियों का काम है। यदि मन योगी हो जाए तो सारी सिद्धियां सहज ही प्राप्त हो जाती हैं।

माया मुई न मन मुआ, मरी मरी गया सरीर।

आसा त्रिसना न मुई, यों कही गए कबीर॥

अर्थ: कबीर कहते हैं कि संसार में रहते हुए न माया मरती है न मन। शरीर न जाने कितनी बार मर चुका पर मनुष्य की आशा और तृष्णा कभी नहीं मरती, कबीर ऐसा कई बार कह चुके हैं।

जब मैं था तब हरी नहीं, अब हरी है मैं नाही।

सब अँधियारा मिट गया, दीपक देखा माही॥

अर्थ: जब मैं अपने अहंकार में डूबा था, तब प्रभु को देख न पाता था। लेकिन जब गुरु ने ज्ञान का दीपक मेरे भीतर प्रकाशित किया तब अज्ञान का सब अंधकार मिट गया। ज्ञान की ज्योति से अहंकार जाता रहा और ज्ञान के आलोक में प्रभु को पाया।

बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।

पंछी को छाया नहीं फल लागे अति दूर ॥

अर्थ: खजूर के पेड़ के समान बड़ा होने का क्या लाभ, जो ना ठीक से किसी को छाँव दे पाता है। और न ही उसके फल सुलभ होते हैं।

ये ऐसे कवि/विद्वान है जिनका जीवन चरित्र और इतिहास ने मुझे बहुत प्रभावित किया है. सामाजिक और भौतिक स्तर की समीक्षा करने पर हम प्रेम को कई वर्गों में बटा हुआ पाते हैं- जिनमें से कुछ मुख्य वर्गों को मैं अपने अनुभव के अनुसार आपके समक्ष रख रहा हूं –

एक तरफा प्रेम

यह प्रेम का सबसे खतरनाक स्वरूप है जिसमें वासना या विशेष इच्छा को अधिक महत्व दिया जाता है। आज के दौर में एक तरफा प्यार के किस्से बहुत आम हैं, और बहुतायत में देखने को मिलते हैं।

इस तरह का प्रेम विशेषतः सबसे पहले युवाओं को अपनी चपेट में लेता है क्योंकि युवाओं में नई-नई उमंगें हमेशा जन्म लेती रहती हैं जिस कारण युवा समाज में सबसे क्रियाशील माना जाता है। आइये इसे उदाहरण से समझते हैं.

इसे भी देखें- आकर्षण का सिद्धांत कैसे काम करता है

जैसे कि आप जानते होंगे कि आज के दौर में Girlfriend and Boyfriend नामक पाश्चात्य संस्कृति का विस्तार अधिकांश क्षेत्रों में पूर्णतः हो चुका है, इसमें कोई बुराई नहीं है जब तक ये Friendship तक सीमित है परन्तु आज के दौर Internet पर परोसी जाने वाली अश्लीलता के कारण युवाओं के दिमाग में विकार उत्पन्न किया जा रहा है।

जिस कारण वे ओछी मानसिकता का शिकार होकर अत्यंत गंभीर समस्या पैदा कर देते हैं और अहंकार में चूर होकर अपने साथ-साथ समाज को भी बड़े स्तर पर क्षति पहुंचते हैं।  अगर आप भी इसमें अपना सुझाव योगदान देना चाहतें है तो अवश्य दें, जिससे देश के युवाओं को विक्षिप्त मानसिकतासे बचाया जा सके…….

प्रेम के बदले प्रेम

प्रेम का यह स्वरूप प्रेम नहीं अपितु एक प्रकार का व्यापार है, जिससे लगभग प्रत्येक व्यक्ति रूबरू होता है। आज के परिप्रेक्ष्य में देखा जाये तो इस दौड़-भाग की जिंदगी में मनुष्य बस पैसा कमाने की होड़ में सभी रिश्तों को ताख पर रख कर पैसे के पीछे भागा चला जा रहा है जैसे मानो पैसा ही उसके लिए सब कुछ हो.

यहाँ पर मैंने यह बताने की कोशिश की है कि कौन से लोग इसकी चपेट में ज्यादातर आते हैं. हालांकि इस बारे में कुछ खास कहने को है ही नहीं, क्योंकि यह नाम से ही जाहिर हो रहा है। इस विषय पर आप अपना सुझाव योगदान देना चाहतें है तो आपका स्वागत है……………

निश्छल/निष्कपट प्रेम-

यह प्रेम का सर्वोत्तम उदाहरण है, और इसी को प्राप्त करना ही सभी का लक्ष्य होना चाहिए, अगर आप प्रेम के इस वर्ग को समझने की लालसा रखते हैं तो इसके लिए आपको प्रकृति के साथ-साथ अपने माता पिता से प्राप्त प्रेम को गहनता से अध्ययन करना होगा

क्योंकि जीवन की प्रथम इकाईप्रकृति तथा दूसरी इकाई माता पिता होते हैं और ये दोनों ही आपको निश्छल/निष्कपट भाव से प्रेम करते हैं. इसके अतिरिक्त प्रेम के और भी भाव हो सकते हैं परंतु मेरे अनुभव में यह तीन मुख्य थे. जिसका उल्लेख मैंने आपके समक्ष प्रस्तुत किया है. 

चूँकि यही तीनों कारण मुझे समाज के अंदर प्रायः दिखाई देते हैं परंतु मैं इस पर किसी प्रकार का हस्तक्षेप या प्रतिक्रिया नहीं देता हूं क्योंकि प्रेम एक गुप्त भावना है और किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना मेरा उद्देश्य नहीं है. प्रेम के ढाई अक्षर का concept बस इतना ही है।

अंत में

अंत में यही कहना चाहूंगा कि ताकत की जरूरत तभी होती है जब कुछ बुरा करना हो, वरना दुनिया में सब कुछ पाने के लिए प्रेम ही काफी है।

उम्मीद करता हूं यह पोस्ट आपको पसंद आई होगी. इस बारे में अगर आप कोई अपना सुझाव या अनुभव देना चाहते हैं तो कृपया कमेंट बॉक्स में अपना कीमती सुझाव या अनुभव जरूर लिखें.

धन्यवाद! 

जय हिंद! जय भारत!

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