ग्लोबल वार्मिंग क्या है और कौन-कौन से घटकों से प्रभावित किया जा रहा है?
आज हम इन्सानों ने अपने आधुनिक भौतिक जीवन को बेहतर बनाने के लिए अपने ग्रह पृथ्वी के संसाधनों का इतना बेरहमी से उपयोग करना शुरू कर दिया है कि हमारी सृष्टि (प्रकृति) दर्द से कराह उठी है,
हमने अपने अस्तित्वगत विस्तारऔर सुखों की प्राप्ति के लिए प्रकृतिमें मौजूद अन्य जीवों, पेड़–पौधों और वनस्पतियों की तदात को इस कदर कम कर दिया है कि जिस दिशा में नज़रे दौड़ाएँ बस इंसान ही इंसान ही दिखाई देता है। हमने अपने सुखों के लिए कई तकनीकों का आविष्कार किया है, जिनमें से अधिकतर आविष्कारों ने आज हमारे ग्रह पृथ्वी के तापमान और जलवायु को प्रभावित करना शुरू कर दिया है। पृथ्वी के बढ़ते तापमान के कारण आज ग्लेशियर पिघल रहे हैं
जिससे समुद्र का जल स्तर बढ़ रहा है, उधर पेड़–पौधों और वृक्षों की अंधाधुंध कटाई से भूमि का क्षरण होना भी संभव होने लगा है। जंगलों की अंधाधुंध कटाई के कारण अधिकांश वन्यजीवों को अपना अस्तित्व बचाने में कई समस्याओं का सामना करना पड़ता या पड़ रहा है।
पिछली शताब्दी की तुलना में हम इंसानों ने आज बड़ी मात्रामें गर्मी को रोककर रखने वाली गैसों को छोड़ा या उत्पन्न कर अपने ग्रह पृथ्वी पर भारी मात्रा में गर्मी पैदा की है। असल में ये प्रभाव– ग्रीनहाउस प्रभाव कहलाता है
और इस प्रभाव को बनाने वाली गैसें– ग्रीनहाउस गैसें कहलाती हैं, और इस ग्रीनहाउस प्रभाव का स्तर पिछले 800,000 वर्षों के किसी भी समय की तुलना में वर्तमान में सबसे अधिक है।
ग्रीनहाउस प्रभाव–
ग्रीनहाउस प्रभाव क्या है? ग्रीनहाउस प्रभाव(greenhouse effect) या हरितग्रह प्रभाव एक प्राकृतिक प्रक्रिया के अंतर्गत आता है असल में यह एक अदृश्य आवरण होता है जो किसी ग्रह या उपग्रह के वायुमंडल में मौजूद कुछ गैसें वातावरण के सामान्य तापमान की अपेक्षा अधिक गर्म बनाने में मदद करतीं हैं।
इन ग्रीनहाउस गैसों में कार्बनडाइआक्साइड (CO₂), जल–वाष्प (Water vapor), मीथेन (CH4), नाइट्रस ऑक्साइड(N₂O), ओज़ोन (O3)और क्लोरो–फ्लोरो कार्बन(CFCs) आदि शामिल हैं।
यदि पृथ्वी पर ग्रीनहाउस प्रभाव की उपस्थिती मौजूद नहीं होती तो शायद ही पृथ्वी पर जीवन पनपा होता, क्योंकि बगैर हरितग्रह प्रभाव के पृथ्वी का औसत तापमान-18° सेल्सियस होता जो कि जीवन की उत्पत्ति के लिए किसी भी तरह से उपयुक्त नहीं है।
ग्रीनहाउस प्रभाव कैसे बनता है–
“ग्रीनहाउस प्रभाव” वह वार्मिंग (गर्मी) है जो तब होती है जब किसी ग्रह के वायुमंडल में कुछ गैसें, ग्रह द्वारा मुक्त गर्मी में फंस जाती हैं। पृथ्वी पर सूर्य की किरणों द्वारा प्राप्त हुए प्रकाश में से लगभग 20 प्रतिशत ग्रह के वातावरण द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है।
पृथ्वी की सतह पर सूर्य का प्रकाश जहां-जहां पड़ता है, वहां-वहां की सतह सूर्य से आ रही ऊर्जा (ऊष्मा) को अवशोषित कर लेती है, सूर्य से प्राप्त इस ऊष्मा को सूर्य हट जाने के कुछ समय बाद गर्मी के रूप में वायुमंडल में वापस मुक्त कर दी जाती है या छोड़ दी जाती है।
इन गर्मी के अणुओं में से कुछ अणुओं को वातावरण में मौजूद ग्रीनहाउस गैस के कुछ अणु पकड़ लेते हैं, जो ग्रह के वायुमंडल को अधिक गर्म करते हैं बाकी शेष अणु अंतरिक्ष में चले जाते हैं। वायुमंडल में जितनी अधिक ग्रीनहाउस गैसें मौजूद होती हैं, उतनी ही अधिक गर्मी इस गैसों के अणुओं द्वारा रोकी और फिर शुरू होता है हरितग्रह प्रभाव, जो ग्रह के वातावरण को गर्म कर देता है.
साधारण शब्दों में कहें तो कार्बनडाइऑक्साइड (CO2) और मीथेन (CH4) गैसे मिलकर हमारे ग्रह पृथ्वी पर ज़्यादातर ग्रीनहाउस प्रभाव (greenhouse effect) या हरितग्रह प्रभाव पैदा करती हैं.
ग्रीनहाउस प्रभाव के मुख्य लक्षण है–
1. ग्रह के तापमान में वृद्धि होना.
2. ग्रह को ठंडा बनाए रखने वाले बड़े–बड़े बर्फ के ग्लेशियरों का पिघलना.
3. ग्रह के वायुमंडल में बड़े स्तर पर परिवर्तन दिखाई देना.
4. आर्द्रता का बढ़ जाना (जो कि किसी भी जीवन के लिए अस्तित्वगत संकटपैदा कर सकता है).
ग्रीनहाउस प्रभाव कब जाना गया–
वैज्ञानिकों ने ग्रीनहाउस प्रभाव के बारे में 1824 से जाना है, हालांकि जोसेफ फूरियर ने 1820 में गणना की थी कि अगर पृथ्वी पर वायुमंडल नहीं होता तो पृथ्वी बहुत अधिक ठंडी होती (उन्होंने कभी ग्रीनहाउस शब्द का प्रयोग नहीं किया)।
पृथ्वी का ग्रीनहाउस प्रभाव पूरी तरह से प्राकृतिक है, जो पृथ्वी की वातावरण को किसी भी जीवन के पनपने योग्य बनाए रखता है। ग्रीनहाउस प्रभाव के बिना, पृथ्वी की सतह औसतन लगभग -33 डिग्री सेल्सियस ठंडी हो जाएगी।
1896 में, स्वीडिश रसायनज्ञ स्वांटे आगस्ट आर्रेनियस ने पाया कि पृथ्वी के वायुमंडल में मनुष्य द्वारा उत्सर्जित कार्बनडाइऑक्साइड(CO2) और जल (H2O) के मिश्रित स्वरूप (जल–वाष्प) द्वारा ग्रीनहाउस प्रभाव को बढ़ाया जा सकता है।
उनके इस शोध ने पिछले कई सालों से चले आ रहे जलवायु अनुसंधानकी एक नई दिशा मजबूत की, जिसने हमें ग्लोबल वार्मिंग के बारे में एक परिष्कृत और नई समझ दी है।
पृथ्वी के इतिहास में ग्रीनहाउस गैसों का स्तर पिछले हज़ारों वर्षों की तुलना में आज काफी ऊपर चला गया है, जो पहले के वर्षों से काफी स्थिर था। क्योंकि आज दहन क्रियाओं के माध्यम से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बड़ी मात्रा में किया जा रहा है,
जैसे– बढ़ती मानव जनसंख्या और बाकी अन्य जीव जो कि CO2 का मुख्य रूप से उत्सर्जन करते है, इसके साथ ही इंसानों द्वारा जीवाश्म ईंधन के दहन व अन्य गतिविधियों के माध्यम से उत्सर्जित गर्मी ने बड़ी मात्रा में ग्रीनहाउस गैसोंके उत्सर्जन में आनुपातिक वृद्धि कर दी है।
वहींCO2 को अवशोषित करने वाले कारकों जैसे– पेड़–पौधों और वनस्पतियों व जंगलों का सफाया भी हम इंसानों द्वारा कभी कृषि के लिए तो कभी स्थायी रूप से रहने के लिए किया जा रहा है.
साधारण और आसान भाषा में कहा जाए तो औद्योगिक क्रांति के बाद से हम इंसानों ने वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा के स्तर को एक तिहाई से भी अधिक बढ़ा दिया है, जिसके कारण हजारों सालों में होने वाले परिवर्तन अब दशकों के दौरान हो रहे हैं।
बढ़ते ग्रीनहाउस प्रभाव के कारण पृथ्वी गर्म हो रही है, जिससे पृथ्वी के वायुमंडल पर कई तरह के प्रभावों का नज़र आना स्वभाविक रूप से फलित होने लगा है।
जब कई अन्य गैसें वातावरण में हैं, तो CO2 को ही सबसे ज्यादा जिम्मेदार क्यों ठहराया जाता है?
जब हम कार्बन आधारित उत्पाद जैसे– कोयला, तेल और गैस आदि जीवाश्म ईंधनजलाते हैं या जंगलों को काटते या फिर जलाते हैं तो असल में हम वातावरण में मौजूद कार्बन की संख्या को और बढ़ाते हैं,
जो ग्रह की जलवायु और वायुमंडल को प्रभावित करता है, वातावरण में बढती कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ 2) की मात्रा (समस्या) जो कि ग्लोबल वार्मिंग बढाने में सक्षम है, अगर अभी से ध्यान नहीं दिया गया तो यह निश्चित है कि हमारा भविष्य अन्धकार मय होगा ही होगा.
यदि वातावरण में CO2 और मीथेन के साथ बाकी की अन्य ग्रीनहाउस गैसेंऐसे ही बेरोकटोक जमा होती रही तो ग्रह पर जीवन का विस्तार हो पाने में कठिनाई उत्पन्न होने लगेंगी साथ ही बढ़ते तापमान के कारण हो सकता है कि ग्रह पर जीवन समाप्त ही हो जाए।
नमी या आर्द्रता (humidity) की भूमिका–
वातावरण में नमी या आर्द्रता जिसे अंग्रेजी में humidity कहा जाता है यह सबसे अधिक मात्रा में छोटे समय के दौरान पृथ्वी के वातावरण को प्रभावित करती है और यह वायुमंडल में सबसे प्रचुर मात्रा में गर्मी रोकने वाला घटक भी है,
लेकिन बढती गर्मी के परिपेक्ष्य में इसकी चर्चा विशेष तौर पर अधिक नहीं की जाती, क्यों? क्योंकि इसका मुख्य कारण है वातावरण में इसकी उपस्थिति जो कि एक छोटे चक्र औसतन 10 दिन की ही होती है.
आर्द्रता या वातावरण में नमी किस हद तक हमारे लिए ख़तरनाक हो सकती है–
32 से 35 डिग्री के तापमान पर बनने वाली आर्द्रता हम इंसानों के लिए खतरनाक और कभी–कभी जानलेवा भी साबित हो सकती है. ऐसा क्यों? क्योंकि स्वाभाविक तौर पर जब पृथ्वी अपने आपको ठंडा करने के लिए अपनी सतह की गर्मी वातावरण में मुक्त करती है तो यह मुक्त हुई गर्मी ऊपर अंतरिक्ष की ओर जाना चाहती है,
लेकिन यदि बीच के वातावरण (जहां पहले से उपस्थित ग्रीनहाउस गैस) में नमी या आर्द्रता मौजूद है तो इस मुक्त गर्मी के अणु वातावरण में मौजूद नमी (जल-वाष्प) के अणुओं द्वारा पकड़ या फंसा लिए जाते हैं, जिस कारण35 डिग्री का तापमानलगभग 50 से 55 डिग्री का महसूस होता है.
हालांकि, वातावरण में नमी (जल-वाष्प) या आर्द्रता का चक्र छोटा होता है लेकिन इस छोटी अवधि में कार्बन–डाइऑक्साईड (सीओ2) का उत्सर्जन स्तर सामान्य की अपेक्षा तीव्रता से बढ़ जाता है जिस कारण पृथ्वी के वायुमंडल का तापमान बढ़ना स्वाभाविक है और अंततः ग्रह के तापमान में बढ़ोत्तरी भी जाती है.
आधुनिक दृष्टिकोण–
वायुमंडलीय कार्बन–डाइऑक्साईड (सीओ2) का स्तर साल 1750 और 2011 के बीच 40 प्रतिशत अधिक बढ़ चुका है। इतिहास में पहली बार2013 में, वायुमंडलीय कार्बन–डाइऑक्साईड (सीओ2) का स्तर 400 PPM (parts per million) को पार कर गया था।
अभी हाल के महीने मई, 2021 में NOAA and Scripps Institution of Oceanography at the University of California San Diego के वैज्ञानिकों ने घोषणा की,कि वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड का मासिक औसत 419 PPM (parts per million) पर पहुंच गया, जो कि अब तक का सबसे उच्चतम स्तर है.
मानव द्वारा निर्मित या उत्सर्जित सीओ2जैसे– औद्योगिक निर्माण से निर्मित गैसें और कृषि स्रोतों से उत्सर्जित हरित गैसें वातावरण में गर्मी के बढ़ने का प्रमुख कारक बनती सिद्ध हो रही हैं, यह कोई आश्चर्य की नहीं बात है कि अब हमें वैश्विक तौर पर औसत तापमान में वृद्धि होती दिख रही है, और जिसके जिम्मेदार हम खुद हैं.
अगर इसी रफ़्तार से आज हम ग्रीनहाउस प्रभाव व सीओ2 के स्तर में अपना योगदान करते या देते रहे तो अपनी आने वाली उत्तराधिकार पीढ़ी (बच्चों और नाती व पोतों) को विरासत में क्या देकर जाएंगे, यहां पर सवाल यह है कि हम अपने भविष्य का निर्धारण कैसे करेंगे, जब परिस्थितियां हमारे सामने घटती दिख रही हों.
ग्लोबल वार्मिंग की चिंता-
अंटार्कटिका का औसत वार्षिक तापमान तट पर माइनस 10 डिग्री सेल्सियस से लेकर इंटीरियर के उच्चतम भागों में माइनस 60 डिग्री सेल्सियस तक होता है।
19वीं शताब्दी के बाद से पृथ्वी की सतह का औसत तापमान 10C बढ़ गया है, जो सूखे, गर्मी की लहरों और उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की तीव्रता को बढ़ाने के लिए पर्याप्त है। लेकिन अंटार्कटिका के ऊपर की हवा दोगुने से भी ज्यादा गर्म हो गई है।
हाल के शोध से पता चला है कि ग्रीनलैंड और पश्चिम अंटार्कटिक पर स्थित बर्फ की चादरों के पिघलने से 02 डिग्री सेल्सियस का तापमान आगे भी बढ़ सकता है जो समुद्र के जल स्तर को 43 फीट ऊपर उठाने के लिए पर्याप्त है।
“ग्लोबल वार्मिंग के कारण बार–बार होने वाली चरम जलवायु घटनाओं पर जवाब व प्रतिक्रिया देने के लिए इन घटनाओं का अवलोकन, पूर्वानुमान और प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली व्यवस्था को दृणता से मजबूत करना या जारी रखना बेहद आवश्यक है।”
ग्लोबल वार्मिंग से संबंधित प्रश्नोत्तर–
प्रश्न– ग्लोबल वार्मिंग से आप क्या समझते हैं?
उत्तर– पूरे ग्रह के सतहीय (पृष्ठ पटल) व वायुमंडलीय (वातावरणीय) तापमान में एक साथ वृद्धि ग्लोबल वार्मिंग कहलाती है.
प्रश्न– ग्लोबल वार्मिंग के लिए उत्तरदायी गैस कौन है? या ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार गैस कौन सी है?
उत्तर– कार्बनडाइआक्साइड (CO₂), जल–वाष्प (Water vapor), मीथेन (CH4), नाइट्रस ऑक्साइड (N₂O), ओज़ोन (O3) और क्लोरो–फ्लोरो कार्बन (CFCs) ये प्रमुख गैसे हैं जो मुख्य रूप से ग्रीनहाउस या हरितग्रह प्रभाव के लिए जिम्मेदार हैं, जो ग्लोबल वार्मिंग के लिए विशेष तौर पर उत्तरदायी हैं.
प्रश्न– ग्लोबल वार्मिंग क्या है इसको रोकने के उपाय?
उत्तर– ग्लोबल वार्मिंग का उल्लेख ऊपर किया जा चुका है, साथ ही ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के हम इंसानों को कार्बन आधारित उपकरणों के प्रयोग को कम करने के साथ–साथ दहन (जीवाष्म ईंधन, प्रदूषण को कम और पेड़–पौधों के साथ जंगलों को काटना या जलाना) आदि क्रियाओं रोकथाम करनी पड़ेगी.
प्रश्न– कौन सी गैस ग्लोबल वार्मिंग में योगदान नहीं करती है? या कौन सी हरित गृह गैस नहीं है?
उत्तर– वैसे हमारे वायुमंडल के वातावरण में कई गैसे मौजूद हैं लेकिन बाकी सभी गैसों के विपरीत सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) हरित गृह या ग्लोबल वार्मिंग में योगदान नहीं करती है.
प्रश्न– विश्व में सर्वाधिक पाई जाने वाली ग्रीन हाउस गैस कौन सी है?
उत्तर– कार्बनडाइआक्साइड(CO₂) जिसे प्रत्येक जीव या प्राणी अपनी प्राण वायू ऑक्सीजन (O₂) के बदले वातावरण में छोड़ता या मुक्त करता है, लेकिन वही दूसरी तरह यह ग्रीनहाउस गैस कार्बनडाइआक्साइड(CO₂) पेड़–पौधों व वनस्पतियों के लिए प्राण वायू का काम भी करती है.
प्रश्न– क्या कार्बन मोनोऑक्साइड ग्रीनहाउस गैस है?
उत्तर– कार्बन का लगभग प्रत्येक भाग अपनी मात्रा के अनुसार ग्रीनहाउस प्रभाव में अपना योगदान करता है, कार्बन मोनोऑक्साइड गैस का प्रभाव ग्रीनहाउस गैसों में न के बराबर होता है, इसलिए कार्बन मोनोऑक्साइड को ग्रीनहाउस गैसों के समूह मैं शामिल नहीं किया गया है.
प्रश्न– क्या नाइट्रोजन एक ग्रीनहाउस गैस है?
उत्तर– हमारे ग्रह पृथ्वी के वायुमंडल में नाइट्रोजन 78 प्रतिशत उपलब्ध है, सबसे अधिक मात्रा में मौजूद होने के कारण यह पृथ्वी को चारों ओर से एक आवरण से ढके हुए है, जिससे यह पृथ्वी की ऊष्मा को बाहर जाने या परावर्तन करने से रोकने का काम करती है, जिस कारण नाइट्रोजन गैस को ग्रीनहाउस गैस भी कहा जाता है.
प्रश्न– मानव निर्मित ग्रीनहाउस गैस कौन सी है?
उत्तर– सबसे अधिक मानव निर्मित ग्रीनहाउस गैस कार्बनडाइआक्साइड (CO₂) है. जिसका अंधाधुंध उत्सर्जन हम इंसानों द्वारा किया जा रहा है.
1. हम इंसान स्वश्न में कार्बनडाइआक्साइड(CO₂) छोड़ते या मुक्त करते हैं.
2. औधोगिक क्षेत्र में बड़ी मात्रा में कार्बनडाइआक्साइड(CO₂) का उत्सर्जन किया जाता है.
3. दहन क्रियाओं से जैसे– जीवाष्म ईंधन को जलाने पर फैलने वाला प्रदूषण.
प्रश्न– विकासशील देशों में से कौन सबसे अधिक ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करता है?
उत्तर– चीन! एशिया महाद्वीप का विकासशील देश है जहां सबसे अधिक ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन किया जाता है. चीन प्रति वर्ष लगभग 10,641 मिलियन मीट्रिक टन का उत्सर्जन करता है जो कि दुनिया के कुल प्रदूषण का30% है.
एडगर डेटाबेस के अनुसार विश्व में सबसे अधिक कार्बन डाइऑक्साइड गैस का उत्सर्जन करने वाला देशचीन है जबकि सर्वाधिक प्रति व्यक्ति कार्बन डाइऑक्साइड गैस का उत्सर्जन करने वाला देश अमेरिका है.
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अंत में–
पृथ्वी हमारे साथ–साथ यहां रहने वाले कई जीव–जंतुओं, पशु–पक्षियों, पेड़–पौधों और वनस्पतियों का बसेरा है, लेकिन हम इंसानों ने अपने निज स्वार्थ के लिए बाकी सब प्रजातियों के लिए अस्तित्वगत संकट पैदा कर दिया है,
साथ ही पृथ्वी के वातावरण पर आधुनिक उपकरणों की मदद से विनाशकारी छाप छोड़ते जा रहे हैं, जिससे पृथ्वी गर्म हो रही है और अंततः ग्रीनहाउस प्रभाव व ग्लोबल वार्मिंग की समस्या को जन्म दे रही है.
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